श्रीविष्णु जी का नवां अवतार बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महाराज शुद्धोदन के पुत्र गौतम बुद्ध का माना गया है।
Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” के अनुसार श्रीविष्णु जी का नवां अवतार बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महाराज शुद्धोदन के पुत्र गौतम बुद्ध का माना गया है जिनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। किंतु पुराणों के अनुसार भगवान बुद्धदेव का अवतार बिहार में गया के निकट कोकट नाम के देश में हुआ था। उनके पिता का नाम अजन बताया जाता है।
पुराणों के अनुसार दैत्यों की शक्ति इतनी बढ़ गयी कि उनके सामने देवता न टिक सके और उन्होंने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। वहां रहने के बाद भी दैत्यों के मन में चिंता बनी रहती कि पता नहीं कब देवता ताकतवर होकर उनसे स्वर्ग वापस ले लें। इसके लिए उन्होंने इंद्र से ही पूछा कि अखंड और स्थिर साम्राज्य के लिए क्या करना चाहिए तो उन्होंने कहा यज्ञ और वेदों में बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए।
इंद्र की बात मान कर दैत्यों ने यज्ञ करने शुरु किए तो उनकी शक्ति भी बढ़ने लगी लेकिन स्वभाव से बदमाश दैत्यों का उपद्रव भी बढ़ने लगा। ऐसा होने पर संसार में असुरों का अत्याचार एक बार फिर बढ़ा तो देवता विष्णु जी के पास गुहार करने पहुंचे। उन्होंने आश्वस्त किया और बुद्ध के रूप में अवतरित होकर मार्जनी अर्थात झाड़ू से रास्ता साफ करते हए आगे बढ़े और चलते हुए दैत्यों के पास पहुंच गए। वहां पहुंच कर उन्होंने दैत्यों को उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है, प्रज्जवलित अग्नि में न जाने कितने जीव भस्म हो जाते हैं। मैं जीव हिंसा बचाने निकला हूं इसीलिए झाड़ू से रास्ता साफ करने के बाद ही पैर रखता हूं। संन्यासी रूपी बुद्धदेव के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए और उन्होंने यज्ञ बंद कर वैदिक नियमों का पालन भी बंद कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप दैत्यों की ताकत जल्द ही कमजोर हो गयी। इधर मौके की तलाश कर देवताओं ने कमजोर दैत्यों पर आक्रमण कर स्वर्ग पर फिर से अधिकार कर लिया। इस तरह भगवान विष्णु ने झाड़ू लगा कर देवताओं के स्वर्ग पर पुनः अधिकार करने का मार्ग प्रशस्त किया।
ये तो हुई पुराणों में वर्णित विष्णु अवतार बुद्धदेव की बात लेकिन हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार महाराज शुद्धोदन के बालक के रूप में जन्मे सिद्धार्थ भी भगवान का अवतार कहे जाते हैं। राजमहल में रहते हुए बालक सिद्धार्थ ने पहले एक बीमार व्यक्ति, कुछ समय बाद वृद्ध और फिर एक मृत व्यक्ति को देखकर संसार से विरक्ति हो गयी। राजा को बात समझ में आई तो उन्होंने यशोधरा नाम की सुंदर कन्या से उनका विवाह करा दिया जिनसे राहुल नाम का पुत्र भी पैदा हुआ लेकिन उनके मन की उथल-पुथल कम नहीं हुई।
ऐसे में एक दिन सिद्धार्थ घर से पैदल ही निकल पड़े और चलते-चलते गया पहुंचे जहां एक पेड़ के नीचे खाना पीना बंद कर तपस्या करने लगे। काफी समय बीतने पर उनके शरीर में केवल हड्डियां ही बचीं। एक दिन वहां से कुछ महिलाएं गाना गाते हुए निकलीं जिसका अर्थ था सितार के तारों को ढीला मत छोड़ो नहीं तो वे बेसुरे हो जाएंगे और इतना मत कसो कि टूट ही जाएं। उन्हें समझ में आ गया कि मोक्ष के लिए खाने पीने का त्याग पर्याप्त नहीं बल्कि संयमित और नियमित भोजन के साथ नींद आदि भी आवश्यक है। इस तरह जीवन का बोध होने से उनका नाम गौतम बुद्ध हो गया। तत्वज्ञान होने पर वे वाराणसी में आए और सारनाथ में सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, अत्यधिक संग्रह न करना, ब्रह्मचर्य का पालन, नाच-गाने से दूर रहना, सुगंध, माला-फूल का त्याग, असमय भोजन न करना, कडे स्थान पर सोना, महिला और सोना धन आदि का त्याग करने उपदेश दिया। उन्होंने यह भी संदेश दिया कि धर्म, बुध और संघ का शरण लो।