Curse to Pandu : शिकार खेलने जंगल गए पाण्डु ने ये क्या कर दिया जो हिरन रूपी मुनि ने दे दिया शाप, जानिए फिर क्या हुआ 

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एक बार राजा पांडु शिकार करते हुए ऐसे घने जंगल में पहुंच गए जहां बहुत से हिंसक जानवार रहते थे।

Curse to Pandu : एक बार राजा पांडु शिकार करते हुए ऐसे घने जंगल में पहुंच गए जहां बहुत से हिंसक जानवार रहते थे। शिकार की खोज में आगे बढ़ते हुए उन्होंने इसी बीच युवा हिरनों के प्रमुख को एक युवा हिरनी के साथ सहवास करते देखा, दोनों को साध कर पांच बाण मारे जिससे दोनों बुरी तरह घायल हो गए। घायल अवस्था में हिरन ने कहा, हे राजन ! अत्यंत कामी, क्रोधी, क्रूर और पापी व्यक्ति भी ऐसा कार्य नहीं करते हैं जो आपने किया है। आप तो राजा हैं इसलिए आप न्याय के सिंहासन पर विराजमान हैं और आपको चाहिए कि ऐसे पापी लोगों को दंड दें किंतु आपने तो स्वयं ही यह पाप किया है।

पाण्डु को मिला शाप

हिरन ने आगे कहा, मुझ निरपराध को मार कर आपने कौन सा पराक्रम किया है। मैं किंदम नाम का तपस्वी मुनि हूं किंतु मनुष्य के रूप में रह कर मुझे यह कार्य करने में लज्जा आ रही थी तो इस रूप में मैं सहवास कर रहा था। मैं सामान्यतः इसी रूप में घूमता रहता हूं। मुझे मारने से आपको ब्रह्म हत्या तो नहीं लगेगी क्योंकि आप यह बात नहीं जानते थे। आपने मुझे जिस अवस्था में मारा है, वह सर्वथा मारने के लिए अनुपयुक्त थी। इसलिए यदि कभी आप अपनी पत्नी के साथ सहवास करेंगे तो उसी अवस्था में आपकी मृत्यु होगी और आपकी पत्नी भी आपके साथ सती हो जाएगी। इतना शाप देते हुए किंदम ने अपने प्राण त्याग दिए। 

पाण्डु ने लिया संन्यास का निर्णय 

हिरन के रूप में किंदम मुनि की मृत्यु का राजा पांडु को उसी तरह का दुख हुआ जिस तरह अपने किसी परिजन की मृत्यु पर होता है। इस घटना को लेकर पांडु बहुत दुखी हुए और मन ही मन बोले, बड़े-बड़े कुलीन लोग भी काम वासना के फंदे में फंस कर अपनी दुर्गति कर लेते हैं। मैने सुना है कि मेरे पिता और धर्मात्मा शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य भी कामवासना के कारण बचपन में ही मर गए थे। उन्होंने विचार किया कि मैं तो विचारवान होने के बाद भी इतनी बड़ी गलती कर बैठा। अब मैं माया मोह का बंधन त्याग कर अपने पिता महर्षि व्यास के समान जीवन निर्वहन करूंगा। सभी प्राणियों को संतान की तरह मानते हुए जो मिला वह खा लूंगा और उपवास भी करूंगा। इतना सोच विचार करने के बाद उन्होंने अपनी पत्नियों कुन्ती और माद्री को बुलाकर कहा, तुम लोग राजधानी में जाओ जहां पर माता, भैया धृतराष्ट्र, विदुर, दादी सत्यवती, भीष्म, राज पुरोहित आदि के पास जाकर कहना की पाण्डु ने संन्यास ले लिया है। पति से यह बात सुन कर कुन्ती और माद्री ने भी उनके साथ वन जाने का निश्चय करते हुए कहा कि संन्यास के अलावा और भी तो आश्रम हैं जिसमें आप हम लोगों के साथ तपस्या कर सकते हैं।

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