Dharam : अष्टक मुनि के पूछने पर, राजा ययाति ने ब्रह्मचारी गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी की ये बताई विशेषताएं

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अष्टक मुनि ने राजा ययाति से जानना चाहा कि ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी को किस तरह के धर्मों का पालन करना चाहिए कि मृत्यु के बाद वे सुखी रहें।

Dharam : ऋषि वैशम्पायन जी ने राजा जनमेजय को महाभारत की कथा बताते हुए कहा जब स्वर्ग से आपके पूर्वज राजा ययाति अष्टक मुनि के आश्रम के निकट गिर रहे थे, तो बीच में ही रोक कर मुनि ने उनसे कई प्रश्न किए। 

अष्टक मुनि ने, इन चार लोगों की विशेषताएं पूछी

अष्टक मुनि ने उनसे जानना चाहा कि ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी को किस तरह के धर्मों का पालन करना चाहिए कि मृत्यु के बाद वे सुखी रहें। राजा ययाति ने उनके प्रश्न का धैर्यपूर्वक उत्तर देते हुए कहा, हे मुनिश्रेष्ठ ! जो ब्रह्मचारी आचार्य की आज्ञानुसार अध्ययन करता है, जिसे गुरु सेवा के लिए आदेश नहीं देना पड़ता है, जो आचार्य के जागने से पहले ही जागता है और उनके सोने के बाद ही सोता है। जिसका स्वभाव मधुर, इंद्रियजयी, धैर्यशाली, सावधान और किसी भी तरह के व्यसन से दूर रहता है, उसे शीघ्र ही सिद्धि की प्राप्ति होती है।  

ययाति ने बतायी गृहस्थ और वानप्रस्थी की परिभाषा

राजा ययाति ने अष्टक मुनि के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि जो मनुष्य धर्मानुकूल धन प्राप्त कर यज्ञ करता है, अतिथियों के आने पर उनका स्वागत सत्कार करता है, किसी दूसरे की वस्तु उसके बिना दिए नहीं लेता है, वही सच्चा गृहस्थ होता है। इसी तरह उन्होंने वानप्रस्थी के बारे में बताया कि जो स्वयं प्रयास करके फल मूल आदि से अपनी जीविका चलाता है, पाप नहीं करता और दूसरों को कुछ न कुछ देता रहता है। दूसरों को कष्ट नहीं पहुंचाता, थोड़ा खाता और नियमित चेष्टा करता है वह वानप्रस्थी शीघ्र ही सिद्धता प्राप्त कर लेता है। 

संन्यासी वही जिसे इंद्रियों पर विजय हो

उन्होंने संन्यासी की विशेषता बताते हुए कहा कि जो किसी कला कौशल, भाषण, चिकित्सा, कारीगरी आदि से जीविका नहीं चलाता, सभी सद्गुणों से भरपूर, इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर चुका और निर्लिप्त होने के साथ ही किसी के घर पर नहीं रहता है। थोड़ा चलता है और अनेक देशों में अकेले तथा नम्रता के साथ विचरण करता है वही सच्चा संन्यासी है। इस तरह की अन्य बहुत सी बातें दोनों के बीच होती रहीं इसी बीच ययाति ने अष्टक से कहा, देवता लोग शीघ्रता करने के लिए कह रहे हैं इसलिए अब मैं गिरूंगा। इंद्र के वरदान से आप जैसे सत्पुरुषों का समागम मुझे प्राप्त हुआ।

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