Shri Bhaktamal : श्री वाराह अवतार की कथा

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भगवान विष्णु का दूसरा अवतार एक वाराह अर्थात जंगली सुअर या शूकर का है।

Shri Bhaktamal : भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य अवतार के बाद “श्री भक्तमाल” में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कौन था और कैसे हुआ। दरअसल ब्रह्मा जी ने स्वायम्भुव मनु को सृष्टि के निर्माण की आज्ञा तो दे दी लेकिन जब मनु ने देखा कि पृथ्वी तो जल प्रलय में डूबी हुई है, ऐसे में सृष्टि की रचना कैसे होगी तो उन्होंने ब्रह्मा जी से ही प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजा के रहने के लिए पृथ्वी का उद्धार करें। आपकी आज्ञा का पालन भी तभी संभव है। 

ब्रह्मा जी इसी विचार में पड़ गए कि पृथ्वी तो जल में डूबी हुई है, ऐसे में इसे कैसे निकाला जाए। इसी चिंता को लेकर वे सर्वशक्तिमान श्री विष्णु हरि के पास पहुंचे तभी उनकी नाक से अंगूठे के आकार का एक वाराह अर्थात जंगली सुअर या शूकर निकला और देखते ही देखते वह पहाड़ के आकार होकर हाथी की तरह गर्जना करने लगा। यह शूकर और कोई नहीं विष्णु जी का एक नया अवतार था जिसका शरीर बड़ा कठोर था, उसकी त्वचा पर कड़े बाल थे, उसकी दाढ़ सफेद और बहुत ही कड़ी थी और आंखों से तेज निकल रहा था। 

इसी भारी भरकम शरीर के साथ उन्होंने जल में प्रवेश किया और अपने पैने खुरों से पानी के विशाल सागर को चीरते हुए उसके पार पहुंचे जहां पर उन्होंने सभी जीवों की शरण स्थली पृथ्वी को देखा तो उसे अपने थूथुन पर उठा कर जल से बाहर आए। जब वे जल से बाहर आ रहे थे, तो इस स्थिति को देख दिति के पुत्र महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से हमला कर दिया। वाराह रूपी श्री विष्णु ने उसे वहीं पर मार डाला और अपने थूथुन पर रख कर पृथ्वी को बाहर निकाल लाए। उन्हें देख ब्रह्मा जी को विश्वास हो गया कि ये वाराह रूपी श्री हरि ही हैं। सबने हाथ जोड़ उनकी प्रार्थना की। 

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