Shri Bhaktamal : सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी की इच्छा विभिन्न लोकों की रचना करने की थी। इसके लिए ब्रह्मा जी ने अखंड तप कर भगवान को प्रसन्न किया। भगवान ने प्रसन्न होकर तप अर्थ वाले “सन” शब्द से जुड़े हुए “सनतकुमार”, ”सनक”, ”सनन्दन” और ”सनातन” रूप में अवतार लिया।
इस अवतार के माध्यम से भगवान ने पहले कल्प के भूले हुए आत्मज्ञान का ऋषियों को उपदेश दिया। ऋषियों के अलावा उन्होंने आदि राज पृथु को भी उपदेश दिया। इनकी एक विशेषता है कि सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न होने से बहुत ही प्राचीन तो हैं ही साथ में ये सदैव पांच वर्ष के बालक के रूप में रहते हैं। ऐसा होने से वे माया की बुराइयों से दूर ही रहते हैं। वे सदैव अपने ब्रह्म स्वरूप में ही लीन रहते हैं और जीवन्मुक्त हैं। इनको उत्पन्न करने के बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें आज्ञा दी कि जाकर प्रजा सृष्टि की रचना करो। तब इन्होंने उनकी इस आज्ञा को विनम्रता पूर्वक न स्वीकार करते हुए भगवान के भजन का औचित्य बताया। उनकी इस बात को सुनकर ब्रह्मा जी के पास कोई जवाब नहीं था। इसके बाद सनकादि ने भगवान का तप करने के लिए जंगल का रास्ता अपनाया। ये भगवान शिव और भीष्म जैसे महान योगी और ब्रह्मचारी की तरह अखंड उर्ध्वरेता हैं अर्थात योग और कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपनी ऊर्जा को नीचे की ओर प्रवाहित करने के स्थान पर उसे ऊपर की ओर प्रवाहित किया, जिससे आत्म शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।