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भगवान विष्णु के 24 अवतारों में एक नर-नारायण अवतार भी है।

Shri Bhaktamal : श्री नर नारायण (बदरीपति) अवतार की कथा

Shri Bhaktamal :  भगवान विष्णु के 24 अवतारों में एक नर-नारायण अवतार भी है। “श्री भक्तमाल” ग्रंथ के अनुसार प्रजापति दक्ष की 13 कन्याओं का विवाह धर्म से हुआ था। उन्हीं में से एक मूर्ति के गर्भ से भगवान नर-नारायण प्रकट हुए। वे बदरीवन में तप करने लगे। बदरीवन में रहने के कारण ही उन्हें बदरीपति भी कहा जाने लगा। उनके घोर तप को देख इंद्रदेव को लगा कि वो स्वर्गाधिपति का पद छीनने के लिए तप कर रहे हैं और उनकी तपस्या में व्यवधान करने का विचार किया। 

इंद्र ने कामदेव को दल-बल के साथ भेजा। कामदेव ने वहां पर पहुंच कर अप्सराओं, वसंत ऋतु, मंद और सुगंधित वायु के साथ ही सुंदर महिलाओं को उपस्थित किया ताकि वे उनसे प्रभावित हो तप छोड़ दें। भगवान नर-नारायण तब तक इंद्र की चाल को समझ चुके थे, इसलिए आश्चर्य न करते हुए हंस दिए। इससे कामदेव भी भयभीत हो गए और वापस जाने लगे तो भगवान नर-नारायण ने कहा, हे मदन ! हे वायु ! हे देवांगनाओं ! आम मुझसे डरो मत बल्कि मेरा आतिथ्य स्वीकार करो। आतिथ्य ग्रहण किए बिना यहां मेरे आश्रम से जाकर इसे सूना न करो। 

अभयदाता भगवान नर-नारायण के ऐसा कहते ही देवगणों को शर्म आ गयी और सिर झुका कर उनकी स्तुति करने लगे। इसके बाद भगवान ने बहुत सी ऐसी सुंदर स्त्रियां प्रकट कीं जिनका रूप देखते ही बनता था और विभिन्न प्रकार के वस्त्र और आभूषण पहने थीं। उनकी सुंदरता देख कर देवगण उनके अंगों से उठ रही सुगंध से ही मोहित हो गए और उनका घमंड चूर-चूर हो गया। देवगणों ने “जो आज्ञा” कहते हुए उन्हें प्रणाम किया और उर्वशी नाम की अप्सरा को साथ लेकर स्वर्गलोक को चले गए। 

“जैमिनीय भारत” पुस्तक के अनुसार एक दैत्य ने सूर्यदेव को प्रसन्न कर अपने शरीर पर सहस्त्र (एक हजार) कवच प्राप्त किए जिसके कारण उसका नाम ही सहस्त्रकवची हो गया। इसके साथ ही उसने सूर्यदेव से यह वर भी प्राप्त किया कि एक हजार वर्षों तक युद्ध करने के बाद ही एक कवच टूट सके लेकिन कवच टूटते ही शत्रु भी मर जाए। इस वरदान को पाकर वह लोगों पर अत्याचार करने लगा। उसी को मारने के लिए नर-नारायण का अवतार हुआ। नर-नारायण वास्तव में दो भाई थे जिनमें से पहला भाई एक हजार वर्ष तक उससे युद्ध कर एक कवच तोड़ कर मृतक सा बन जाता किंतु तब तक दूसरा भाई उसे जीवित कर देता और स्वयं एक हजार वर्ष तक युद्ध कर एक और कवच तोड़ देता। इस तरह से लड़ते हुए जब दैत्य के पास केवल एक कवच बचा तो दैत्य भागकर सूर्य में विलीन हो गया। इस पर नर-नारायण भगवान बद्रीकाश्रम में जा कर तप करने लगे। वही असर द्वापर में कर्ण पर हुआ जो मां के गर्भ से ही कवच धारण कर पैदा हुए थे। तब नर-नारायण ने अर्जुन और कृष्ण के रूप में अवतार लेकर उसे मारा।  

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