PANDU’S DEATH : जानिए पाण्डु की मृत्यु के बाद किसने किया अंतिम संस्कार, अस्थियां लेकर मुनियों का दल कहां पहुंचा

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शतश्रृंग पर्वत पर रहने वाले ऋषि मुनियों को तपस्या कर रहे राजा पाण्डु की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया।

PANDU’S DEATH : शतश्रृंग पर्वत पर रहने वाले ऋषि मुनियों को तपस्या कर रहे राजा पाण्डु की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार किया जहां उनकी छोटी पत्नी माद्री भी चिता पर बैठ कर सती हो गयीं। अब ऋषि-मुनियों ने विचार किया कि परम यशस्वी महात्मा पाण्डु के बच्चों और पत्नी को अस्थियों के साथ उनके परिजनों को सम्मान पूर्वक सौंप दिया जाए। इसके लिए सबने हस्तिनापुर की यात्रा शुरु की। 

ऋषि-मुनि अस्थियां लेकर पहुंचे

कुछ ही दिनों में सारे लोग हस्तिनापुर राज्य के वर्द्धमान द्वार पर पहुंचे। जैसे ही वहां के द्वारपालों से भीष्म, सोमदत्त, बाल्हीक, धृतराष्ट्र, विदुर, सत्यवती, गान्धारी, दुर्योधन आदि को मुनियों के आने की जानकारी मिली, सब के सब मुनियों का स्वागत करने के लिए द्वार तक आए। सभी लोगों ने ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया और बैठ गए। शोरगुल शांत होने पर एक ऋषि अपने स्थान पर खड़े होकर बोले, कुरुवंश शिरोमणि राजा पाण्डु विषयों का भोग त्याग कर शतश्रृंग पर्वत पर आकर रहने लगे थे, वे तो ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे किंतु दिव्य मंत्रों के प्रभाव से धर्मराज के अंश से युधिष्ठिर, वायु के अंश से भीमसेन, इंद्र के अंश से अर्जुन और अश्विनी कुमारों के अंश से नकुल व सहदेव का जन्म हुआ। पहले तीनों कुन्ती के और नकुल-सहदेव माद्री के पुत्र हैं। इनके वेदाध्ययन को देखकर राजा पाण्डु को बड़ी प्रसन्नता होती आज से 17 दिन पहले वे स्वर्ग सिधार गए और माद्री भी उनके साथ ही सती हो गयीं। अब आप लोग जो भी उचित समझें वो करें, इतना कहते हुए ऋषियों ने राजा पाण्डु और माद्री की अस्थियों का कलश उन्हें सौंपते हुए कहा कि ये उनकी पत्नी और बच्चे हैं जिन्हें आप लोग संभालिए। इतना बोलकर ऋषि-मुनि वहां से चले गए। 

पाण्डु और माद्री का श्राद्ध कर्म हुआ

इसके बाद हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने विदुर को आदेश दिया कि वे राज्योचित सामग्री के साथ महाराज पाण्डु और माद्री की अंत्येष्टि क्रिया का प्रबंध करने के साथ ही दान आदि करें। विदुर ने उनकी आज्ञा स्वीकार करते हुए भीष्म की सम्मति से गंगा तट पर सारे कार्य विधि विधान से संपन्न कराए। कुन्ती, धृतराष्ट्र और भीष्म ने अपने बंधु बांधवों के साथ मिल कर दोनों का श्राद्ध कर्म किया और ब्राह्मणों को भोजन करा बहुत सा दान दिया।

 

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