गोवत्स द्वादशी के दिन दूध का सेवन क्यों है वर्जित, जानें विशेष पूजन विधि और सावधानियाँ

0
312

Vedeye desk

गोवत्स द्वादशी का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है, जो इस बार 28 अक्टूबर को पड़ेगा. इस दिन विशेष रूप से गौमाता और उसके बछड़े की पूजा की जाती है और इस पर्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है—दूध और उससे जुड़े उत्पादों का सेवन न करना. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत करने वाले को गाय का दूध, दही, घी, छाछ, और अन्य दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. यह व्रत पुत्र की लंबी उम्र की प्राप्ति के लिए किया जाता है और इसका पालन करने से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है.

गोवत्स द्वादशी का महत्व
गोवत्स द्वादशी का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन मां दुर्गा के भक्त विशेष रूप से गोमाता की पूजा करते हैं. इस दिन गौ माता की पूजा करने से न केवल पुत्र की दीर्घायु की कामना पूरी होती है, बल्कि  घर में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है. इस दिन गौमाता और उसके बछड़े के साथ विशेष प्रेम और आदर के साथ पूजा की जाती है, जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है.

गोवत्स द्वादशी पर पूजा की विधि

प्रातःकाल की तैयारियां:  इस दिन प्रातः स्नान के बाद पूजा की तैयारी करें. सबसे पहले एक साफ स्थान पर गोमाता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें. इसके लिए रोली, अक्षत, पुष्प और जल का पात्र तैयार रखें. इन सामग्रियों से पूजा करने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है.

आरती का महत्व: इस दिन व्रत करने वाले को अपने परिवार के बड़े-बूढ़ों, ब्राह्मणों और गुरुजन की आरती करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. यह पूजा परिवार के सदस्यों के बीच एकता और प्रेम को बढ़ाती है.

 दूध और अन्य उत्पादों से बचें
गोवत्स द्वादशी के दिन, व्रती को विशेष रूप से दूध और उससे जुड़े खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. यह परंपरा इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. गाय का दूध, दही, घी, छाछ, और तेल में बनी भुजिया, पकौड़ी आदि का सेवन वर्जित है. इसके बजाय, अंकुरित मोठ, मूंग और चने का सेवन किया जा सकता है, और इन्हीं से बने प्रसाद को गौ माता को चढ़ाना चाहिए.

गौमाता में देवी-देवताओं का वास
गौमाता के प्रत्येक अंग में देवी-देवताओं का निवास माना गया है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है. गाय के मुख में चारों वेदों का वास होता है, जबकि उसके सींगों में भगवान शिव और विष्णु जी का निवास होता है. गाय के पेट में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा जी, ललाट पर रुद्र, दोनों कानों में अश्वनी कुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुण और जीभ में सरस्वती का वास माना जाता है. इसलिए, गौ माता की पूजा से न केवल व्यक्तिगत लाभ होता है, बल्कि समाज और परिवार की भलाई भी सुनिश्चित होती है.

गोवत्स द्वादशी का यह पर्व हमें न केवल गौ माता की पूजा का महत्व बताता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि इस दिन दूध और अन्य उत्पादों का सेवन न करके हम अपने व्रत का पालन कर सकते हैं. इस दिन की पूजा विधि और सावधानियाँ अपनाकर हम अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना कर सकते हैं और अपने परिवार में सुख और समृद्धि ला सकते हैं. 

इसलिए, 28 अक्टूबर को गोवत्स द्वादशी के अवसर पर गौमाता और उसके बछड़े का पूजन करना न भूलें, और इस पर्व का आनंद लें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here