Vedeye Desk
शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने के साथ उपांग ललिता व्रत भी रखा जाता है. उपवास करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष मास की रात्रिव्यापिनी पंचमी तिथि का होना जरुरी माना जाता है. इस वर्ष यह व्रत 7 अक्टूबर सोमवार के दिन यह व्रत रखा जाएगा. ललिता पंचमी व्रत सभी प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है, इसलिए स्त्रियों द्वारा इस व्रत को जरुर रखना चाहिए. पौराणिक कथा के अनुसार आदि शक्ति देवी ललिता का वर्णन देवी पुराण में भी करा गया है.
दस महाविद्याओं में भी है शामिल
देवी पार्वती के दस रूप हैं, जिन्हें दस महाविद्या के नाम से जाना जाता है. इन दस महाविद्याओं की पूजा करने से सभी प्रकार की शक्तियों की प्राप्ति हेतु होती है. माता उपांग ललिता भी इन दस महाविद्या में से एक है, जिन्हें त्रिपुर सुंदरी’ और ‘षोडशी के नाम से भी जाना जाता है. जो लोग भी देवी को प्रसन्न करने के लिए पूजा प्रार्थना कर रहें उन्हेंं शारदीय नवरात्रि की पंचमी के दिन माता का पूजन और व्रत जरुर करना चाहिए और जो लोग पूरी नवरात्रि व्रत करते हैं, उन्हें दैनिक पूजा के अलावा अलग से माता ललिता की पूजा करके कथा कहनी और सुननी चाहिए.
व्रत के नियम
नवरात्रि की पंचमी तिथि के दिन व्रती को अपामार्ग के दातुन करके स्नान करें. स्नानादि से निवृत होकर सफेद वस्त्र पहनकर सुवर्णमयी देवी का पूजन करें. इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और भगवान शंकर की भी पूजा का विधान है. देवी को लड्डू, मीठी पूड़ी आदि का नैवेद्य अर्पण करे. इसके बाद ललिता पंचमी की कहानी, ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ करें. चंद्रोदय पर होने अर्घ्य दे करके नक्त व्रत करके दूसरे दिन देवी का विसर्जन करें.
व्रत की कथा
राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती और भगवान शिव का अपमान होने पर माता सती ने अपने शरीर को योग शक्ति से त्याग दिया था. इस घटना से व्याकुल होकर भगवान शिव माता सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे. यह देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 भाग किए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरे. कहा जाता है कि नैमिषारण्य में सती का हृदय गिरा था, इसलिए यह स्थान एक शक्तिपीठ है और यहाँ देवी ललिता का मंदिर स्थित है.



