गांधारी को जैसे ही पता लगा कि उसका विवाह नेत्रहीन के साथ तय किया गया है तो उसने एक कपड़े की कई तह लगाकर अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली।
Dhritarashtra Marriage : धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के जन्म के बाद से ही कुरुवंश, कुरुजांगल देश और कुरुक्षेत्र की बहुत अधिक उन्नति हुई। पहले की अपेक्षा अन्न की उपज बढ़ गयी, पहले कभी सूखा भी पड़ जाता था, किंतु अब ऋतुएं अपने समय पर होने के साथ ही वर्षा भी पर्याप्त होने लगी। चारों ओर पेड़-पौधे और फल-फूल दिखने लगे। नगर में व्यापारी और कारीगर ही नहीं विद्वान लोगों की संख्या भी बढ़ने लगी। लोगों के पाप कर्म छोड़ने से सतयुग जैसा वातावरण उपस्थित हो गया। हर तरफ धर्म का बोलबाला हो गया क्योंकि देवव्रत भीष्म बड़ी ही लगन से धर्म की रक्षा का कार्य करते थे।
कुरुवंश राजकुमार ने शस्त्रों संग पाया ज्ञान
महात्मा भीष्म जहां राजकाज को देख रहे थे, वहीं राजकुमारों की रक्षा करते हुए उन्हें संस्कारित कर रहे थे। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र विद्या के साथ ही गज शिक्षा और नीति शास्त्र का भी अध्ययन किया। इतिहास, पुराणों तथा अन्य धर्म ग्रंथों का भी उन्हें समुचित ज्ञान कराया गया जिसके चलते वे सभी विषयों पर अपना निश्चित मत रखते थे। पांडु श्रेष्ठ धनुर्धर तो धृतराष्ट्र बलवान बने। विदुर के समान धर्मज्ञ और धर्मपरायण तो तीनों लोकों में कोई न था। अब राज्याभिषेक का समय आया तो धृतराष्ट्र जन्मांध और विदुर के दासी पुत्र होने के नाते पांडु को राज्य की बागडोर सौंपी गयी।
धृतराष्ट्र का हुआ विवाह
राजकुमारों के विवाह का समय आया तो भीष्म को जानकारी मिली कि गांधारराज सुबल की पुत्री गांधारी सभी गुणों से संपन्न है और उसने भगवान शंकर की आराधना करके सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त कर लिया है। भीष्म ने राजा सुबल के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर दूत भेजा। सुबल पहले तो नेत्रहीन के साथ विवाह को राजी नहीं हुए किंतु कुल, प्रसिद्धि और सदाचार पर विचार करने के बाद हामी भर दी। गांधारी को जैसे ही पता लगा कि उसका विवाह नेत्रहीन के साथ तय किया गया है तो उसने एक कपड़े की कई तह लगाकर अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली। गांधारी के भाई शकुनि ने अपनी बहन हस्तिनापुर पहुंचाई तो भीष्म ने धृतराष्ट्र के साथ उसका विवाह संपन्न करा दिया।