Samudra Manthan : जानें समुद्र मंथन की योजना कहां बनी, किसने उखाड़ा मंदराचल पर्वत और समुद्र ने मंथन के लिए कौन सी शर्त रखी
Samudra Manthan : समुद्र मंथन की कथा से तो सभी परिचित होंगे लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसकी योजना क्यों और कहां बनी, उस मीटिंग में क्या तय हुआ और समुद्र ने मंथन करने के पहले कौन सी शर्त रखी। इस कथा में आपको इन सारे सवालों का जवाब मिलेगा।
अमृत प्राप्ति के लिए किया इस पर्वत का चुनाव
देवताओं के मन में अमृत पाने का विचार आया तो सभी ने एक विशेष पर्वत की विशिष्ट चोटी को चुना। यह विशेष पर्वत था मेरू जिसकी चमक इतनी तेज थी कि सूर्य की चमक भी उसके सामने फीकी पड़ जाए। इस पर्वत की एक और खासियत थी कि उसकी चोटियां आसमान को छूती दिखती थीं और उनमें न जाने कितने रत्न लगे थे। इन रत्नों के कारण उसकी चमक और भी तेज थी। इसी पर्वत की एक चोटी पर सारे देवता मीटिंग करने के लिए एकत्र हुए जिनमें स्वयं भगवान नारायण और ब्रह्मा जी भी शामिल हुए। देवताओं ने दोनों भगवानों के सामने प्रस्ताव रखा कि अमृत का पान करना है ताकि वे अजर अमर हो जाएं। उनका प्रस्ताव ध्यान से सुनने के बाद भगवान नारायण ने कुछ क्षण विचार किया और बोले, हां अमृत मिल सकता है लेकिन इसके लिए देवताओं और असुरों को मिल कर समुद्र का मंथन करना होगा मंथन करने से ही अमृत की प्राप्ति होगी। यह प्रस्ताव असुरों के पास भेजा गया तो वे भी राजी हो गए।
देवताओं ने पर्वत को उखाड़ने का किया आग्रह
देवताओं ने पर्वत को उखाड़ने का किया आग्रह
अब बात आई कि समुद्र को मथने के लिए मथानी और रस्सी किसे बनाया जाए। नारायण के परामर्श से देवताओं ने मंदराचल पर्वत को उखाड़ने की असफल चेष्टा की। दरअसल मंदराचल पर्वत बहुत ही विशाल था, उसकी ऊंचाई 11 हजार योजन अर्थात 132 हजार किलोमीटर। पर्वत इतना ही अंदर भी थी। कोशिश करने के बाद भी जब देवता पर्वत को नहीं हिला सके तो वे फिर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की शरण में गए और निराशा में बोले, पर्वत तो हिल भी नहीं रहा है, उसे उखाड़ पाना बस में नहीं है। देवताओं की प्रार्थना सुन कर उन्होंने शेषनाग से मंदराचल पर्वत को उखाड़ने का आग्रह किया। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार महाबली शेषनाग ने वनवासियों की मदद से पर्वत को उखाड़ दिया।
समुद्र ने मंथन से पहली रखी यह शर्त
अब मंदराचल को साथ लेकर देवता समुद्र के किनारे पहुंचे और उससे कहा कि हम लोग अमृत पाने के लिए तुम्हारा मंथन करेंगे। समुद्र ने इस कार्य के लिए हामी तो भरी किंतु शर्त भी रख दी। समुद्र ने कहा कि अमृत का कुछ अंश उसे भी चाहिए। ऐसा करने पर ही वह मंथन करने से होने वाली पीड़ा को सहने के लिए तैयार है। देवताओं और असुरों ने समुद्र की इस बात को मान लिया तो कच्छपराज से पर्वत का आधार बनने का आग्रह किया तो उन्होंने संसार के कल्याण के लिए इस बात को मान लिया। मथानी की व्यवस्था होने के बाद रस्सी की आवश्यकता हुई तो नागराज वासुकि को तैयार किया गया। नागराज ने पूरे पर्वत को अपने शरीर से लपेटा और मुख की ओर असुर तथा पूंछ की ओर देवताओं ने जुट कर मथना शुरु किया।