Dharam : दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य भी देवगुरु ब्रहस्पति के समान महान विद्वान थे। उनकी एक और विशेषता थी कि वे किसी भी मृत व्यक्ति को पुनः जीवित करने की संजीवनी विद्या भी जानते थे। देवताओं के दैत्यों के साथ ही कई बार युद्ध हुए जिनमें कई ने जीत कर देवलोक पर विजय भी प्राप्त की। ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि युद्ध में दैत्यों के मरते हुए उनके गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या का प्रयोग कर उन्हें फिर से जीवित कर देते थे। इसी कारण देवगुरु ब्रहस्पति का बड़ा पुत्र कच शुक्राचार्य से इस विद्या को सीखने के लिए गया और उनके शिष्यत्व में एक हजार वर्षों तक रहा।
जब संजीवनी के ज्ञान से कच ने गुरु को किया जीवित
कच दैत्यगुरु शुक्राचार्य से ज्ञान प्राप्त करने के साथ ही उनकी और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा मन लगाकर करता जिससे दोनों ही प्रसन्न रहते थे। जैसे ही दैत्यों को कच की योजना का पता लगा कि वह संजीवनी विद्या सीखने आया है, उन्होंने अलग-अलग तरीकों से दो बार उसकी हत्या की। देवयानी के आग्रह पर शुक्राचार्य ने दोनों बार ही उसे जीवित कर दिया तो तीसरी बार दैत्यों ने उसकी हत्या कर शव को टुकड़े-टुकड़े कर जला दिया और राख को एक विशेष प्रकार की शराब वारुणी में मिला कर गुरु को ही पिला दिया। इस बार भी देवयानी के आग्रह पर शुक्राचार्य ने कच को पुकारा तो उसने उनके पेट के भीतर से ही आवाज दी। इस पर गुरु ने पहले कच को संजीवनी विद्या का दान किया जिससे वह जीवित हो गया। गुरु ने कच को आज्ञा दी कि तुम मेरा पेट फाड़ कर बाहर आ जाओ और फिर मुझे भी जीवित करो। ऐसा ही हुआ और दोनों लोग जीवित हो गए।
ब्राह्मणों के लिए तय की मर्यादा
शुक्राचार्य इस जानकारी पर हीन भावना से ग्रस्त हो गए कि धोखे में शराब पीने के कारण उनका विवेक ही नष्ट हो गया जिसके कारण उन्होंने ब्राह्मण कुमार कच को ही शराब के साथ पी लिया। ग्लानि के साथ ही उन्हें क्रोध आया और उसी समय उन्होंने घोषणा की, आज से यदि संसार का कोई ब्राह्मण शराब पीएगा तो उसका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा और उसे ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। इस लोक के साथ ही वह परलोक में भी कलंकित होगा। उन्होंने जोर देकर कहा, हे ब्राह्मणों, देवताओं और मनु की संतानों ! कान खोलकर सुन लो, आज से मैने ब्राह्मणों के लिए धर्म मर्यादा तय कर दी है। इधर एक हजार साल पूरे होने पर कच अपने गुरु की आज्ञा पाकर स्वर्ग चला गया।