Dharam : देवताओं के आग्रह पर देवगुरु बृहस्पति के पुत्र सीखने पहुंचे संजीवनी विद्या, जानिए फिर वहां क्या हुआ? 

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कच के आग्रह पर शुक्राचार्य बोले, बेटा, मेरे आश्रम में तुम्हारा स्वागत है, मैं तुम्हें स्वीकार करता हूं, तुम मेरे लिए पूजनीय भी हो।

Dharam : तीनों लोकों पर अधिकार करने के लिए देवताओं और असुरों में कई बार युद्ध हुए हैं। ऐसे ही एक बार युद्ध के समय अपनी जीत के लिए आंगिरस बृहस्पति को देवताओं ने तो असुरों ने गुरु शुक्राचार्य को अपना पुरोहित बनाया। दोनों ही ब्राह्मण होने के बाद भी विरोधी गुटों के आचार्य होने के कारण एक दूसरे से ईर्ष्या रखते थे। दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें देवताओं ने बहुत से असुरों को मार डाला। संजीवनी विद्या के जानकार होने के नाते शुक्राचार्य ने सभी को जीवित कर दिया। असुरों के पुनः जीवित होने की जानकारी पा कर देवताओं में निराशा छा गयी क्योंकि बृहस्पति देव संजीवनी विद्या नहीं जानते थे। इस बात से घबराकर देवता बृहस्पति के बड़े पुत्र कच के पास गए और उनसे आग्रह किया कि वे भी शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या प्राप्त करें। गुरु शुक्राचार्य इन दिनों वृषपर्वा के साथ रह रहे हैं। 

कच से संजीवनी विद्या सीखने का किया आग्रह

देवताओं की बात स्वीकार कर कच सीधे गुरु शुक्राचार्य के पास गया और उनका उचित अभिवादन कर अपना परिचय दिया, मैं महर्षि अंगिरा का पौत्र और देवगुरु बृहस्पति का पुत्र कच हूं। आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार कीजिए और मैं एक हजार वर्षों तक आपके पास रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। कृपया मुझे अपना शिष्य बनने की स्वीकृति दीजिए। कच के आग्रह पर शुक्राचार्य बोले, बेटा, मेरे आश्रम में तुम्हारा स्वागत है, मैं तुम्हें स्वीकार करता हूं, तुम मेरे लिए पूजनीय भी हो। तुम्हारा स्वागत सत्कार करता हूं और मानता हूं कि इस तरह यह बृहस्पति देव का भी स्वागत होगा। शिष्यत्व ग्रहण करने के साथ ही कच ने आचार्य के अनुसार ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। 

गुरु पुत्री देवयानी कच पर हुई मोहित

गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में रहते हुए वह गुरु के साथ ही गुरु पुत्री देवयानी को भी प्रसन्न रखता था। गुरु आश्रम में सेवा करते हुए पांच सौ वर्षों का समय कब बीत गया पता ही नहीं लगा। इसी बीच दैत्यों को इस बात की जानकारी हुई कि कच तो संजीवनी विद्या सीखने आया है जो उनके गुरु शुक्राचार्य के अलावा संसार में अन्य कोई नहीं जानता। दैत्यों को इस बात का किसी तरह पता लग गया तो उन्होंने संजीवनी विद्या को सिर्फ अपने लिए सुरक्षित रखने के लिए कच को मारने की योजना बना ली। उन्होंने गायों को चराने गए कच की हत्या कर उसके शरीर के टुकड़े कर एक भेड़िए को खिला दिए। शाम को गौवों के बिना रक्षक के लौटने पर गुरु पुत्री देवयानी को चिंता हुई, उसे शक हुआ कि किसी ने कच को मार तो नहीं दिया। वह अपने पिता के पास गयी और आशंका बताते हुए कहा कि मैं बिना कच के जीवित नहीं रह सकती हूं। इतना सुनने पर शुक्राचार्य ने कहा तू क्यों चिंता करती है। मैं उसे अभी जिला देता हूं। शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या का प्रयोग करते हुए कच को पुकारा तो उसके शरीर के अंग-अंग भेड़िए के पेट को फाड़ कर बाहर आए और गुरु के सामने कच जीवित उपस्थित हुआ। देवयानी के पूछने पर कच ने आप बीती बतायी।

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