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कर्ण अपने बाहुबल और मेरी सहायता से अंगदेश पर ही नहीं सारी पृथ्वी पर शासन कर सकता है।

Dharma : दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा बनाकर दिया सम्मान, जानिए भीमसेन ने क्या संबोधित कर उड़ाया  मजाक 

Dharma : रंग मंडप में अर्जुन को चुनौती देने आए कर्ण से जैसे ही गुरु कृपाचार्य ने उसके कुल का परिचय पूछा तो वह निरुत्तर सा होकर लजा गया। इस पर दुर्योधन ने कहा, आचार्य शास्त्र के अनुसार उच्च कुल के पुरुष, शूरवीर और सेनापति तीनों ही राजा हो सकते हैं। यदि अर्जुन कर्ण के साथ इसलिए नहीं लड़ना चाहते कि वह राजा नहीं है तो मैं कर्ण को अभी अंगदेश का राज्य देता हूं। 

कर्ण के धर्मपिता का दुलार

इतना कहते ही दुर्योधन ने कर्ण को सोने के सिंहासन पर बैठा कर अभिषेक किया। इस मौके पर कर्ण के धर्मपिता अधिरथ पसीने से लथपथ, बिखरे हुए पटके और अस्थिपंजर शरीर के साथ पहुंचे और बेटा-बेटा कह कर दुलारने लगे। कर्ण ने भी धनुष छोड़ उनके पैरों में सिर रखकर प्रणाम किया। अधिरथ ने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया और आंसुओं से उन्हें पूरी तरह भिगो दिया। इस दृश्य को देख भीमसेन हंसते हुए बोले, अरे सूत पुत्र ! तू अर्जुन के हाथों मरने के भी योग्य नहीं है। तू अपने वंश के अनुरूप झटपट घोड़ों की चाबुक संभाल ले। तू अंग देश का राज्य संभालने के योग्य भी नहीं है। इतना सुन कर्ण लंबी सांस खींच सूर्य की ओर देखने लगे। 

दुर्योधन ने दी चुनौती

इतनी देर में भाइयों की भीड़ से निकल कर दुर्योधन भीमसेन से बोला, तुम्हें ऐसी बातें अपने मुख से नहीं निकालनी चाहिए। क्षत्रियों में ताकत ही सबसे ऊपर है। इसलिए नीच कुल के शूरवीर से भी युद्ध कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। शूरवीर और नदियों की उत्पत्ति का ज्ञान बहुत कठिन है। कर्ण स्वभाव से ही कवच-कुंडल धारी और सर्वगुण सम्पन्न हैं। इस सूर्य के समान तेजस्वी कुमार को भला कोई सूतपत्नी ही जन्म दे सकती है। कर्ण अपने बाहुबल और मेरी सहायता से अंगदेश पर ही नहीं सारी पृथ्वी पर शासन कर सकता है। मेरा यह काम जिससे बर्दाश्त नहीं हो रहा हो वह रथ पर चढ़ कर धनुष की डोरी खींच सकता है। इतना सुन रंगमंडप में हाहाकार मच गया और तब तक सूर्यास्त हो गया। दुर्योधन ने कर्ण का हाथ पकड़ कर उसे बाहर निकला, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, भीष्म जी आदि के साथ पाण्डव भी अपने-अपने आवासों की ओर चले गए।   

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