Dharma : जिस समय गुरु द्रोणाचार्य के निर्देश पर बनाए गए रंगमंडप में अर्जुन के रण कौशल को देख कर राजपरिवार के साथ ही प्रजा जन हतप्रभ थे, उसी समय कर्ण ने जीते जागते हुए पहाड़ की भांति प्रवेश किया। अर्जुन को संबोधित करते हुए कर्ण ने कहा, तुम घमंड न करो, मैं तुम्हारे दिखाए हुए काम को और भी विशेषता के साथ दिखाऊंगा। यह सुन कर दर्शकों में तहलका मच गया। अर्जुन को भी लज्जा महसूस हुई।
कर्ण ने युद्ध कौशल दिखा सबको करा चकित
आचार्य द्रोण की अनुमति से कर्ण ने वे सभी कौशल दिखाए जो अर्जुन दिखा चुके थे। इससे दुर्योधन बहुत ही प्रसन्न हुआ और गले लगा कर बोला, मेरे सौभाग्य से ही आपका आगमन हुआ है। हम और हमारा राज्य आपका ही है, आप इसका उपभोग कीजिए। कर्ण ने जवाब दिया कि मैं तो स्वयं ही आपसे मित्रता करता चाहता था, वर्तमान समय में मैं अर्जुन से द्वन्द युद्ध करने का इच्छुक हूं।
कर्ण ने अर्जुन को द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा
इस वार्तालाप से अर्जुन को ऐसा लगा मानों कर्ण भरी सभा में उसका तिरस्कार कर रहा हो। उन्होंने कहा, कर्ण ! बिना बुलाए आने वालों और बिना बुलाए बोलने वालों को जो गति मिलती है, वही तुम्हें हमारे हाथों मिलने वाली है। इस कर्ण ने कहा, यह रंगमंडप सभी के लिए है, क्या इस पर केवल तुम्हारा ही अधिकार है। आरोप क्यों लगा रहे हो, साहस है और धनुर्धर हो तो धनुष बाण से बात करो। मैं तुम्हारे गुरु के सामने ही तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूंगा। गुरु द्रोण की आज्ञा से अर्जुन द्वन्द युद्ध करने कर्ण के पास जा पहुंचे।
द्वन्दयुद्ध के पहले कृपाचार्य ने कर्ण को टोका
दोनों को युद्ध के लिए तैयार देख नीति के जानकार कृपाचार्य बोले, कर्ण ! पाण्डुनंदन अर्जुन कुन्ती के सबसे छोटे पुत्र हैं। इस कुरुवंश शिरोमणि का तुम्हारे साथ युद्ध होने जा रहा है इसलिए तुम अपने माता पिता और वंश का परिचय बताओ। यह जान लेने के बाद ही निर्णय लिया जा सकेगा कि तुम्हारे साथ अर्जुन का युद्ध होगा अथवा नहीं। इतना सुनते ही कर्ण पर मानों घड़ों पानी पड़ गया और वह श्री हीन हो गया तथा मुख लज्जा से झुक गया।