महाभारत की कथा सुनते हुए राजा जनमेजय ने जब ऋषि वैशम्पायन से यह जाना कि कौरवों और पांडवों को गुरु कृपाचार्य ने धनुर्वेद अर्थात धनुष चलाने की शिक्षा दी।
Dharma : महाभारत की कथा सुनते हुए राजा जनमेजय ने जब ऋषि वैशम्पायन से यह जाना कि कौरवों और पांडवों को गुरु कृपाचार्य ने धनुर्वेद अर्थात धनुष चलाने की शिक्षा दी तो उनकी जिज्ञासा गुरु कृपाचार्य के बारे में विस्तार से जानने की हुई। ऋषि ने उनकी जिज्ञासा शांत करते हुए बताया कि महर्षि गौतम के पुत्र थे शरद्वान। वे बाणों के साथ ही पैदा हुए थे। उनका जितना मन धनुर्वेद में लगता था उतना वेदाभ्यास में नहीं। उन्होंने कठोर तपस्या कर सारे अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए।
कृपाचार्य का तप भंग करने इंद्र ने अप्सरा को भेजा
शरद्वान के कठोर तप को देख कर इंद्रदेव भयभीत हो गए और उन्हें लगा कि यह सब उनका सिंहासन पाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं, मन में ऐसा विचार आते ही उन्होंने तप भंग करने के लिए जानपदी नाम की देव कन्या को भेजा। उस देवकन्या ने उन्हें तरह-तरह से रिझाने की कोशिश की जिसके परिणाम स्वरूप उनके पुरुष हार्मोन का स्राव एक सरकंडे पर हो गया। इस स्थिति में वे धनुष बाण और तप स्थली तथा उस देव कन्या को छोड़ कर कहीं चले गए। इधर उस सरकंडे के दो हिस्से हो गए जिनसे एक बालक और एक बालिका ने जन्म लिया।
राजा शन्तनु ने बच्चों का किया लालन-पालन
इसी समय राजा शान्तनु अपने दल बल के साथ शिकार खेलते हुए वहां पहुंचे। उनके किसी सेवक की नजर उन बच्चों पर पड़ी तो उसने विचार किया कि ये बच्चे किसी धनुर्वेद के ज्ञाता ब्राह्मण के बच्चे हैं। उसने यह सूचना राजा को दी तो उन्होंने दोनों बच्चों को उठा लिया अपने ही बच्चे मान कर घर ले आए और उनका लालन पालन करने लगे। उन्होंने बालक का नाम कृप और बालिका का कृपी रख दिया। कुछ समय बाद शरद्वान ने तप बल से ध्यान किया तो उन्हें इस बात की जानकारी हो गयी। वे राजर्षि शान्तनु के पास आए और उन बालकों का गोत्र आदि बता कर चारों प्रकार के धनुर्वेदों, शस्त्रों और शास्त्रों की शिक्षा दी। थोड़े ही समय में बालक कृप सभी विषयों का आचार्य हो गया और कौरव तथा पांडवों आदि राजकुमारों के साथ धनुर्वेद का अभ्यास करने लगा।