हनुमान जी राक्षसों के सुझाव को सुन कर मन ही मन बोले कि इन लोगों की ऐसी बुद्धि देने में सरस्वती जी ने सहायता दी है.
Dussehra 2025 : लंकाधिपति रावण सीता माता का हरण कर ले गया तो वानरों के प्रमुखों को संसार की सभी दिशाओं में पता लगाने के लिए भेजा गया. लंका में सीता माता की खोज करने की बात आई क्योंकि जटायु के भाई सम्पाती से संकेत मिला था कि समुद्र पार त्रिकूट पर्वत पर लंका है, जहां के एक बगीचे में सीता जी बैठी हैं. अब सामने सबसे बड़ी समस्या थी, कि सौ योजन लंबे समुद्र को पार कैसे किया जाए. सभी वानरों ने संदेह व्यक्त किया तो अंगद ने कहा मैं चला तो जाऊंगा लेकिन लौटने में असमंजस है. इस पर जाम्बवान ने हनुमान जी को उनका बल याद दिलाया और कहा कि संसार में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जो तुम न कर सके.
इतना सुनते ही हनुमान जी ने अपने शरीर को पर्वत के समान करके कहा, हां मैं खारे पानी के समुद्र को लांघ सकता हू्ं. लंका पहुंच कर हनुमान जी ने सीता माता से भेट कर कुशलक्षेम बताते हुए धीरज बंधाया कि कुछ दिन और रुकें, प्रभु श्री राम स्वयं ही यहां आकर राक्षसों को मारकर आपको ले जाएंगे. भूख लगने पर हनुमान जी उस बगीचे के फल खाने लगे और रोकने पर वहां के रखवाले राक्षसों को मार डाला तो मेघनाद उन्हें बांध कर लंकाधिपति रावण के दरबार में ले गए. रावण और दरबार के सभी लोगों की राय थी कि यह एक वानर है और इसे मृत्युदंड दिया जाए, तभी विभीषण जी ने मना करते हुए कहा कि दूत को मारना नहीं चाहिए, दंड देकर छोड़ दें. इस बार सारे राक्षसों ने जैसे ही उनकी पूंछ को जलाने की बात कही तो हनुमान जी मन ही मन प्रसन्न हो गए.
गोस्वामी तुलसीदास श्री राम चरित मानस में लिखते हैं, “बचन सुनत कपि मन मुसुकाना, भइ सहाय सारद मैं जाना । जातुधान सुनि रावन बचना, लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।।” हनुमान जी राक्षसों के इस सुझाव को सुन कर मन ही मन बोले कि इन लोगों की ऐसी बुद्धि देने में सरस्वती जी ने सहायता दी है. पूंछ जलने पर लंका की कैसी गति हुई यह तो सब जानते हैं.