मान्यता है कि सच्चे हृदय से मां दुर्गा की स्तुति करने पर वह प्रसन्न होकर प्रकट ही नहीं होती, बल्कि अपने भक्तों के कष्टों का निवारण भी करती हैं।
Maa Durga : मान्यता है कि सच्चे हृदय से मां दुर्गा की स्तुति करने पर वह प्रसन्न होकर प्रकट ही नहीं होती, बल्कि अपने भक्तों के कष्टों का निवारण भी करती हैं। देवताओं की स्तुति पर ऐसा आशीर्वाद स्वयं मां ने दिया था।
इन रूपों में लोगों के यहां विराजती हैं भगवती
दरअसल स्वर्ग सहित तीनों लोकों पर आधिपत्य करने वाले महिषासुर का वध कर जब मां दुर्गा महिषासुर मर्दिनी बनी तो उस समय वो बहुत ही क्रोधित थीं, जिन्हें शांत करना आवश्यक था। ऐसे में देवराज इंद्र सहित सभी देवता हाथ जोड़ कर हृदय में हर्ष और रोमांच भरते हुए उनकी विनती करने लगे। देवताओं ने कहा कि जिन देवी के अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान शेषनाग, ब्रह्मा जी एवं महादेव भी सक्षम नहीं हैं, वे भगवती चंडिका सारे संसार का पालन और अशुभ भय का नाश करने पर विचार करें। देवताओं ने उनकी स्तुति में कहा जो पुण्यात्मा लोगों के घरों में लक्ष्मी, पापियों के यहां दरिद्रता, शुद्ध अंतःकरण वाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप में, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप तथा कुलीन पुरुषों में लज्जा रूप में रहती हैं।
इसलिए कहा जाता है देवी को स्वाहा स्वाधा
देवताओं ने मां की स्तुति करते हुए कहा कि आप ही जगत की उत्पत्ति का कारण हैं, आपमें सत्व, रजो और तमो तीनों गुण होने के बाद भी आपमें दोषों का संसर्ग नहीं जान पड़ता है। भगवान विष्णु और महादेव भी आपका पार नहीं जानते। सभी प्रकार के यज्ञों में जिसके उच्चारण से सब देवता तृप्ति प्राप्त करते हैं वह स्वाहा आप ही हैं। इतना ही नहीं पितरों की भी तृप्ति के कारण आपको स्वाधा भी कहा जाता है और आप ही मोक्ष की प्राप्ति का साधन हैं।
इस तरह मां ने दिया आशीर्वाद
मार्कण्डेय पुराण में देवी महात्म्य के अनुसार देवताओं ने मां का वंदन करते हुए कहा कि यदि आप चाहतीं तो महिषासुर की विशाल सेना को अपने कोप से क्षण भर में नष्ट कर उन्हें जला सकती थी किंतु आप चाहती हैं कि लंबे समय तक नरक भोगने का कार्य करने वाले राक्षसों का आपने स्वयं ही वध इसलिए किया ताकि अस्त्रों से पवित्र होकर वे स्वर्ग की प्राप्ति करें। तरह-तरह से स्तुति करने के साथ ही दिव्य फूलों, चंदन धूप आदि से पूजन करने के बाद मां ने प्रसन्न होकर देवताओं से कहा कि तुम लोग जिस वस्तु की इच्छा रखते हो वह वर मांग लो। इस पर देवताओं ने कहा कि यदि आप वर देना ही चाहती हैं तो यही वर दें कि हम लोग और मनुष्य जब भी आपकी सच्चे हृदय से स्तुति करें तो आप दर्शन देकर कष्ट दूर कर धन संपदा में वृद्धि करें। देवी मां ऐसा ही होगा कह कर अंतर्धान हो गयी।