मां काली की पूजा क्यों है जरूरी, दीपावली में रात निशीथकाल का है बहुत महत्व, इसे व्यर्थ न होने दें, जानिए गहरी बात…

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इस बार का दीपावली पर्व आपकी श्री वृद्धि के साथ ही ध्येय सिद्धि की पूर्ति भी करे और आप लोगों पर देवों में प्रथम पूज्य गणेश जी, लक्ष्मी जी एवं मां काली की कृपा सदा बनी रहे. यूं तो पंचदिवसीय दीपोत्सव का प्रत्येक दिन महत्वपूर्ण है किंतु दीपावली की रात्रि जिसे महानिशीथ काल भी कहा जाता है, सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है. इस निशीथ काल का सदुपयोग कर माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने से न चूकें.  

यूं तो किसी भी पूजन का फल भगवान अवश्य ही देते हैं किंतु दीपावली में निशीथ काल में की गई पूजा विशेष फल देती है. निशीथ काल में महाकाली की पूजा करनी चाहिए. देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से ही एक हैं काली माता. काली मां सिद्धि और पराशक्तियों की आराधना करने वाले साधकों की ईष्टदेवी मानी जाती हैं लेकिन केवल तांत्रिक साधना ही नहीं अपितु शास्त्रों में आमजन के लिए भी महाकाली की पूजा विशेष फलदायी बताई गई है. काली पूजा को महानिशा और श्यामा पूजा भी कहा जाता है. 

ताशपत्ते खेलना परम्मरा नहीं, विद्यार्थी करें ईष्टदेव का जाप

निशीथ काल में पूरे घर की लाइटें जलाकर उत्सव मनाना चाहिए और पूरी तरह से ऊर्जावान रहें. सुस्ती या डलनेस नहीं आनी चाहिए. कुछ लोग ताश पत्ते खेलना या ड्रिंक करने को परम्परा मानते हैं जो सर्वथा गलत है इसलिए ताश तो कतई नहीं खेलना चाहिए. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को इस रात अपने ईष्ट देव का जाप करना चाहिए, निश्चित रूप से  इस दिन किए गए जाप का फल अवश्य मिलता है. परिवार के साथ सत्संग या भजन सुनना सुनाना चाहिए, कोई धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन भी कर सकते हैं. पूरी रात जागरण करें तो अति उत्तम है. 

इसलिए की जाती है माता काली की पूजा 

मां दुर्गा ने दुष्ट असुरों का संहार करने के लिए मां काली का स्वरूप धारण किया था. इस दिन मां काली की पूजा करने और उनसे प्रार्थना करने पर भक्त के जीवन में आने वाले शत्रु दूर होते हैं. मान्यता है कि इसी दिन काली माता की 60 हजार योगिनियां प्रकट हुई थीं. इस रात मां काली की पूजा कर  के प्राकट्य की कथा सुननी और परिवार जनों को सुनानी चाहिए.

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