Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” के अनुसार चौदह मनुओं के अवतारों में पहला अवतार स्वायम्भुव मनु का है जिनकी पुत्री आकृति का विवाह रुचि प्रजापति से किया गया। रुचि प्रजापति ने आकृति के गर्भ से पुरुष और स्त्री के जोड़े को जन्म दिया। पुरुष तो साक्षात यज्ञ स्वरूप धारी भगवान विष्णु थे। उनके साथ जिस स्त्री ने जन्म लिया वह भगवान से कभी अलग न होने वाली लक्ष्मी जी के अंश के स्वरूप “दक्षिणा” थी। मनु अपने नाती अर्थात अपनी पुत्री आकृति के तेजस्वी पुत्र को प्रसन्नता के साथ अपने घर ले आए और दक्षिणा को रुचि प्रजापति के पास ही रहने दिया।
जब दक्षिणा विवाह के योग्य हुई तो उसने यज्ञ भगवान को ही पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। भगवान यज्ञ पुरुष ने दक्षिणा के साथ विवाह कर उन्हें संतुष्ट किया। भगवान यज्ञ पुरुष ने दक्षिणा से सुयम नामक देवताओं को उत्पन्न कर तीनों लोकों के बड़े-बड़े संकटों को दूर किया। कथा में आगे कहा गया है कि जब स्वायम्भुव मनु सभी तरह की कामनाओं और भोगों से विरक्त होकर राज्य छोड़ दिया और पत्नी शतरूप के साथ वन में तपस्या करने चले गए। उन्होंने सुनंदा नदी के तट पर एक पैर से खड़े रहकर सौ वर्षों तक घोर तपस्या की। जंगल में भूखे असुर और राक्षसों ने भगवान की स्तुति करते समय स्वायम्भुव मनु को अचेतावस्था में बड़बड़ाने वाला जानकर खा डालने के लिए हमला किया। इस स्थिति में अंतर्यामी भगवान यज्ञ पुरुष अपने पुत्र “याम” नाम के देवताओं के साथ वहां आए और असुरों तथा राक्षसों का संहार किया। इसके बाद वे इंद्र के पद पर प्रतिष्ठित होकर स्वर्ग के शासक बन गए।