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भगवान ऋषभदेव के नौ पुत्र जो आत्मविद्या में निपुण थे। वे प्रायः दिगम्बर स्वरूप में ही रहते और लोगों को परमार्थ का उपदेश देते थे। उन्हें ही नौ योगीश्वर कहा जाता है।

Shri Bhaktamal : श्री नौ योगीश्वर की कथा

Shri Bhaktamal : भगवान विष्णु के 24 अवतारों के बाद श्री हरिध्याननिष्ठ भक्तों के बारे में जानेंगे और इस कड़ी मे सबसे पहले नौ योगीश्वरों की कथा समझिए जो बहुत ही रोचक है। ब्रह्मा जी की आज्ञा से मनु और शतरूपा ने सृष्टि का आरंभ किया। उनके पुत्र का नाम प्रियव्रत था। प्रियव्रत के पत्र आग्नीध्र, आग्नीध्र के पुत्र नाभि और नाभि के पुत्र हुए ऋषभदेव जो भगवान वासुदेव के अंश थे। उन्होंने मोक्ष धर्म का उपदेश देने के लिए अवतार लिया था। ऋषभदेव जी के सौ पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े थे राजर्षि भरत। वे भगवान नारायण के परमभक्त थे। यह भूखंड जो “अजनाभवर्ष” कहा जाता था, उन्हीं के नाम पर “भारतवर्ष” कहा जाने लगा। वे चक्रवर्ती सम्राट थे और संपूर्ण पृथ्वी का राज्यभोग करने के बाद वन में तपस्या करने चले गए। भगवान ऋषभदेव के शेष 99 पुत्रों में से नौ भारतवर्ष के आस-पास स्थित नौ द्वीपों के अधिपति हुए और 81 पुत्र कर्मकांड के रचयिता ब्राह्मण हुए। 

भगवान ऋषभदेव के अन्य नौ पुत्र संन्यासी हो गए जो आत्मविद्या में निपुण थे। वे प्रायः दिगम्बर स्वरूप में ही रहते और लोगों को परमार्थ का उपदेश देते थे। उन्हें ही नौ योगीश्वर कहा जाता है जो कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन हैं। वे किसी भी लोक में घूमने के अधिकारी और जीवन्मुक्त महात्मा थे। इन नौ योगीश्वरों का विदेहराज महात्मा निमि से उस समय संवाद हुआ जब वे एक यज्ञ करा रहे थे। महात्मा योगीश्वरों ने भगवान को प्राप्त कराने वाले धर्मों और साधनों का वर्णन किया। 

महाराज निमि के पूछने पर प्रथम योगीश्वर कवि ने उन्हें भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने वाले भागवत धर्म का उपदेश दिया। दूसरे योगीश्वर हरि ने भगवद्भक्तों के धर्म, लक्षण और स्वभाव का वर्णन किया। तीसरे योगीश्वर अंतरिक्ष ने माया और उसका स्वरूप के बारे में बताया। चौथे योगीश्वर प्रबुद्ध ने माया को पार करने के उपाय के बारे में जानकारी दी। पांचवें योगीश्वर पिप्पलायन ने नारायण नाम वाले परब्रह्म परमात्मा का वर्णन किया। 

छठवें योगीश्वीर आविर्होत्र ने महाराज निमि को जन्म मृत्यु के चक्र से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का नैष्कर्म्य बताया। सातवे योगीश्वीर द्रुमिल ने भगवान के तब तक हुए अवतारों के साथ ही भविष्य में होने वाले अवतारों के बारे में बताया। आठवें योगीश्वर चमस ने  बताया जो लोग भगवान श्री कृष्ण से विमुख हो कर चलते हैं, वो कड़ी मेहनत से घर,पुत्र, मित्र और धन-संपत्ति आदि एकत्र करते हैं लेकिन अंत में सब छोड़ कर जाना पड़ता है और न चाहते हुए भी घोर नरक भोगना पड़ता है। इसके बाद महाराज ने नौवें योगीश्वर करभाजन से पूछा, भगवान किस समय किस रंग और किस आकार को स्वीकार करते हैं। उन्होंने उत्तर देते हुए कहा, सतयुग में भगवान का श्री विग्रह का रंग सफेद, उनकी चार भुजाएं, सिर पर जटा होती है तथा वे वत्कल कपड़े अर्थात काले हिरन की खाल, यज्ञोपवीत, रुद्राक्ष की माला, दंड और कमंडल धारण करते हैं। त्रेतायुग में श्री विग्रह का रंग लाल,चार भुजाएं, करधनी, सुनहरे बाल होते हैं। द्वापर में भगवान का रंग सांवला है और कलियुग में काला होगा। इस तरह राजा निमि को उपदेश देकर नौ योगीश्वर अंतर्ध्यान हो गए।     

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