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Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” में मनु अवतारों की कथा का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के संचालन के लिए समय-समय पर अलग-अलग मनुओं को भेजते हैं।

Shri Bhaktamal : श्री मनुओं के अवतारों की कथा

Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” में मनु अवतारों की कथा का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्मा जी सृष्टि के संचालन के लिए समय-समय पर अलग-अलग मनुओं को भेजते हैं और उनका कार्यकाल पूरा होने पर नए मनु को भेजेते हैं। सृष्टि के संचालन और समापन का यह क्रम चलता ही रहता है। मन्वन्तर अवतारों के बारे में जानने से पहले मनवन्तर का अर्थ समझ लिया जाए। इसका मतलब है मनु की अवधि या मनु का जीवन काल।

हिंदू काल गणना के अनुसार चार युग माने गए हैं, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। ये चारों युग जब एक हजार बार पूरे हो जाते हैं तो उस काल को कल्प बोला जाता है। इस तरह एक कल्प यानी एक हजार चतुर्युगीय काल होते हैं जो ब्रह्मा जी का एक दिन होता है। ब्रह्मा जी के एक दिन अर्थात एक कल्प में 14 मनु होते हैं। प्रत्येक मनु 71 चतुर्युगीय से कुछ अधिक समय तक अपना समय पूरा करता है। एक मनु के कार्यकाल को ही मन्वन्तर कहते हैं। इन मन्वन्तरों में भगवान पवित्रता, सद्भाव, ज्ञान और सकारात्मकता गुणों से युक्त मनुओं में पौरुष प्रकट कर विश्व का पालन करते हैं। विश्व व्यवस्था का संचालन करते हुए अपने-अपने मन्वन्तर में बड़ी सावधानी से सबके सब मनु पृथ्वी पर चारों चरणों से पूर्ण धर्म का अनुष्ठान खुद ही करते हैं और फिर प्रजा से करवाते हैं। एक मन्वन्तर की अवधि लगभग 30 करोड़ 80 लाख 20 हज़ार मानव वर्ष होती है। एक विशेष मनु की अवधि पूरी होने पर उस समय के इंद्र, सप्तर्षि, मनुपुत्र, भगवद अवतार और देवता भी नए हो जाते हैं।

हिंदू काल गणना के अनुसार वर्तमान समय सातवें वैवस्वत मनु का है। विवस्वान अर्थात सूर्य के पुत्र यशस्वी श्राद्धदेव ही वैवस्वत मनु हैं। सबसे पहले मनु स्वायम्भुव मनु थे, उनकी कथा भी बड़ी रोचक है। मरीच आदि महान शक्तिशाली ऋषियों से भी सृष्टि का विस्तार न होते देख ब्रह्मा जी को चिंता होने लगी और उन्हें लगा कि लगता है इसमें देव ही विघ्न डाल रहे हैं। वे इस विषय पर चिंतन कर रहे थे। तभी उनके शरीर के दो भाग हो गए और उन दोनों ही भागों से एक स्त्री पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। उनमें से पुरुष सार्वभौम सम्राट स्वायम्भुव मनु कहलाए और वह स्त्री महारानी शतरूपा। उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। इन तीनों कन्याओं के विवाह हुए और फिर उनकी संतानों से संसार भर गया। पहले स्वायम्भुव मनु के बाद स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तामस मनु, रैवत मनु, चाक्षुष मनु और फिर वर्तमान विश्व व्यवस्था देख रहे वैवस्वत मनु हुए।

इनके बाद आठवें सावर्णि मनु, दक्षसावर्णि मनु, ब्रह्मसावर्णि मनु, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, देवसावर्णि और 14 वें इंद्रसावर्णि मनु होंगे। ये 14 मन्वन्तर भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही काल में चलते हुए सनातन धर्म की रक्षा करते हैं।

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