Shri Bhaktamal : श्री व्यास जी के अवतार की कथा

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Shri Bhaktamal : चेदि देश के राजा वसु थे, उन्होंने देवराज इंद्र से आग्रह कर एक दिव्य विमान प्राप्त किया जिस पर बैठकर वो आकाश में सबसे ऊपर उड़ते थे, जिसके कारण उनका नाम उपरिचर भी पड़ गया। एक बार राजा उपरिचर वसु से उनकी पत्नी गिरिका ने पुत्र की कामना से समागम की प्रार्थना की किंतु वो उन्हें छोड़ कर शिकार करने निकल गए। वन में ऋतुराज वसंत की शोभा देखकर उनकी काम वासना जगी और सेक्स हार्मोन का रिसाव हो गया। तभी उन्हें अपनी पत्नी की इच्छा याद आई तो उन्होंने इस रिसे हुए हार्मोन को बरगद के फल जिसे पुटक कहते हैं पर रख कर एक बाज के माध्यम से अपनी रानी के पास भिजवाया। संयोग से रास्ते में उसका दूसरे बाज से झगड़ा हो गया जिससे वह फल गिरा जिससे हार्मोन यमुना नदी में चला गया। उस जल को मछलीरूप धारिणी अप्सरा आद्रिका ने पी लिया। वही मछली मल्लाहों के जाल में फंसी और जब मछुओं ने उसका पेट चीरा तो उसमें से एक अत्यंत सुंदर पुत्र और पुत्री को पाया। मछुवे उन दोनों को राजा उपरिचर वसु के पास ले गए और अपनाने का आग्रह किया। राजा ने लड़के को रख लिया जो आगे चल कर मत्स्य नाम का धर्मात्मा राजा बना। कन्या के शरीर से मछली की महक आती थी इसलिए उसे दासराज नाम के मल्लाह को सौंप दिया। यह कन्या रूप के साथ ही सत्यवादी थी इसलिए उसका नाम सत्यवती पड़ा। 

एक बार तीर्थयात्रा पर निकले महर्षि पाराशर ने उस कन्या को देखा तो समागम की इच्छा व्यक्त की। उसने कन्या भाव समाप्त होने, दुर्गंध आने और लोगों के द्वारा देखे जाने का संकट बताया तो ऋषि ने तत्काल तीनों समस्याएं दूर कर दीं और कहा कि तुम्हारा कन्या भाव सुरक्षित रहेगा। तुम्हारी सुगंध एक एक योजन अर्थात करीब 16 किलोमीटर दूर तक फैलेगी इसके साथ ही उन्होंने सृष्टि में अंधेरा कर दिया। ऋषि ने सत्यवती के साथ समागम कर तत्काल एक शिशु को जन्म दिया। यह शिशु पाराशर जी से उत्पन्न होने के कारण पाराशर्य, यमुना के द्वीप में उत्पन्न होने के कारण द्वैपायन, वेदों का विस्तार करने के कारण वेद व्यास के नाम से विख्यात हुआ। उन्होंने अपनी माता से कहा, आवश्यकता पड़ने पर तुम मेरा स्मरण करना, मैं तुरंत ही आ जाऊंगा। माता की आज्ञा लेकर वे तप करने चले गए। बाद में उन्होंने वेद और ब्राह्मणों के आग्रह पर पांचवें वेद के रूप में महाभारत ग्रंथ के साथ ही महापुराणों की रचना की। इसके बाद देवर्षि नारद की प्रेरणा से परम विश्राम को गए। शुकदेव जी इन्हीं के पुत्र हैं।  

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