Shri Bhaktamal : ब्रह्मा जी के मुख से निकले वेदों की रक्षा के लिए विष्णु भगवान ने हयग्रीव का अवतार लिया। “श्री भक्तमाल” ग्रंथ के अनुसार मधु और कैटभ नाम के दैत्यों ने ब्रह्मा जी से वेदों को चुरा कर पाताल लोक पहुंच गए तो ब्रह्मा जी बहुत ही व्याकुल हुए। उन्होंने विचार किया कि वेदों को पाना आवश्यक है क्योंकि वेद ही तो उनकी आंख, ताकत, गुरु और सबसे बड़े देव हैं। वे वेदों के बिना संसार की उत्तम सृष्टि नहीं कर सकेंगे। उन्होंने श्री हरि भगवान विष्णु की शरण ली और पूरी बात बतायी।
श्री हरि ने हयग्रीव अर्थात घोड़े के सिर वाला रूप धारण किया और पाताल लोक पहुंच कर ऊंची आवाज में सामवेद का पाठ करने लगे। उनकी आवाज सुनकर मधु और कैटभ ने तुरंत ही वेदों को समय के साथ बांध कर पाताल लोक में सबसे नीचे की ओर फेंक दिया और आवाज की दिशा में दौड़े। इसी बीच हयग्रीव रूपी श्री विष्णु पाताल लोक की तलहटी में पड़े हुए वेदों को ले ब्रह्मा जी के पास पहुंचा कर अपने मूल रूप में आ गए।
इधर मधु और कैटभ को जब आवाज की दिशा में कोई नहीं मिला तो जल्दी से उस स्थान पर पहुंचे जहां वेद फेंके थे किंतु उन्हें वेद भी नहीं मिले। दोनों पाताल से बाहर आए तो देखा कि श्री हरि हमेशा की तरह शेषशय्या पर हमेशा की तरह योगनिद्रा में सो रहे हैं। उन्होंने सोता देख दोनों दैत्यों ने बड़ी जोर का ठहाका लगा कर उन्हें जगा दिया। इसके बाद दोनों असुरों ने उनसे युद्ध करना शुरु कर दिया। भगवान ने दोनों को युद्ध में मार कर ब्रह्मा जी को चिंता से मुक्त किया।
एक अन्य कथा के अनुसार दिति के पुत्र हयग्रीव दैत्य ने देवी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया और अमर होने का वरदान मांगा। देवी ने “जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु” बोला तो हयग्रीव ने कहा, अच्छा तो मैं हयग्रीव के द्वारा ही मारा जाऊंगा। भगवान की माया मां जगदम्बा इतना कह कर अंतर्ध्यान हो गयीं। दैत्य ने सोचा कि हयग्रीव तो मैं ही हूं और भला मैं अपने द्वारा क्यों मारा जाऊंगा। बस इस विचार के साथ ही वह पृथ्वी पर अत्याचार करने लगा तो भगवान ने हयग्रीव का अवतार लेकर उसका वध किया।