सांसारिक चीजों में सुख की तलाश करना व्यर्थ है. संतों का कहना है कि उन पदार्थों में सुख की तलाश करना गलत है जिन्हें एक न एक दिन किसी भी तरह से नष्ट तो होना ही है. इसलिए सुख तलाशना है तो भगवान की भक्ति में तलाशना चाहिए, भक्ति मार्ग से भगवान में आसक्ति ही सब समस्याओं का हल है.
धन, स्त्री, पुत्र में सुख तलाशना मूर्खता
स्वामी रामसुख दास जी अपने प्रवचनों में भगवान की भक्ति की तुलना गंगा नदी के जल और ओस की बूंदों से करते थे. वे कहते हैं परिहरि राम भगति सुर सरिता अर्थात भगवान की भक्ति गंगा जी हैं और उन्हें छोड़ कर यदि कोई व्यक्ति रात में ओस की पत्ती पर पड़ने वाली बूंदों से अपनी जल की तृप्ति करना चाहता है तो वह मूर्ख ही है. वे अपनी बात को और सरल शब्दों में समझाते हुए कहते हैं कि भगवान की भक्ति रूपी गंगा जी बह रही हैं और उनको छोड़ कर ओस के कण के समान धन, स्त्री, पुत्र, मानस, बड़ाई, प्रशंसा, निरोगता जैसे संयोगों से जो व्यक्ति सुख की कामना या कल्पना करता है वह मूर्ख ही कहा जाएगा. सामान्य तौर पर देखने में आता है कि व्यक्ति इन्हीं संयोगों से सुख की कामना करता है, इन पदार्थों से सुख ढूंढता है और उनके पीछे भटकता है किंतु उसे यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि ये सारी चीजें क्षणिक सुख देने वाली और ओस की बूंदों के समान हैं जो सूर्य की रोशनी के आगे स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी. जब यह ओस सूर्य की जरा सी तपिस के आगे स्वयं ही सूख जाने वाली हैं तो इनसे तृप्ति कैसे मिल सकती है, क्या कभी किसी की प्यास ओस की बूंदों से बुझी है, शायद कभी भी किसी की भी नहीं.
परमात्मा से संबंध बनाने में ही कल्याण
यदि सच्चा सुख पाना है तो परमात्मा की तरफ चलो और उसी से संबंध बनाओ क्योंकि वह अविनाशी है अविचल है. धन, ,स्त्री,पुत्र, संपत्ति, प्रशंसा, मान सम्मान आदि से प्रीत व्यर्थ है, प्रीत करनी है तो ईश्वर से ही करो. उन्होंने कहा कि जरा कोयला के कालेपन पर विचार करो यह काल कब हुआ जब अग्नि के संपर्क से हटा क्योंकि अग्नि के साथ संबंध बनाने में तो वह लाल लाल चमकता ही है, जैसे ही अग्नि से दूर हुआ कुछ देर में काला पड़ गया. अब इसे बार-बार धोया जाए, तो भी इसका कालापन साफ नहीं हो पाता, इसलिए कहा जाता कोयला हो नहीं उजला सौ मन साबुन लगाय.