महर्षि कण्व के आश्रम में रहने वाली शकुंतला के गर्भ से एक ऐसे तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ कि आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और देवगण दुदुंभि बजाने लगे तथा अप्सराएं प्रसन्नता में गीत गाने लगीं. बालक जंगल में भी वन्य पशुओं के बीच रह कर बड़ा होने लगा तो कई बार शेर, बाघ जैसे हिंसक पशुओं को पकड़ कर ले आता और एक पेड़ से बांध कर अपनी मां को दिखाता. कभी कुछ पशुओं के साथ खेलता तो कभी उनकी गलती पर जोर की डांट लगाता. वह उनके साथ ऐसे घुल मिल जाता मानों वह सब पशु न होकर उसके टैडी बियर हैं और खेल कर आनंद लेता रहता. लोग देख कर दंग रह जाते कि एक छोटा सा बालक इतने हिंसक जानवरों के साथ खेलता और डांटता है.
इतना ही नहीं बालक हिंसक पशुओं को वश में करके उनके साथ खेलते हुए बड़ा हो रहा बालक इतना निडर हो गया कि महर्षि कण्व के आश्रम में बलशाली राक्षसों और पिशाचों को मुक्के मार कर भगा देता. भारी भरकम और देखने में डरावने लगने वाले दैत्य भी उस छोटे से बालक का सामना नहीं कर पाते थे. एक बार की बात है कि एक महाबलशाली दैत्य उस बालक के पास क्रोध में आया क्योंकि उसके बहुत से साथियों का पिट पिट कर बुरा हाल हो गया था. जब उसे पता लगा कि इस छोटे से बालक के कारण दैत्यों की इतनी दुर्दशा हुई है, तो वह उस बालक को अपने हाथों से दबोचने के लिए आगे बढ़ा. लेकिन यह क्या उस बालक ने फुर्ती के साथ उस महाबली दैत्य को पकड़ लिया और दोनों एक दूसरे को मारने के लिए हमलावर हो गए. बालक ने उस दैत्य की गर्दन को अपनी बाहों से इतना कस के जकड़ रखा था कि वह चाह कर भी न निकल सका और छटपटाने लगे. दैत्य कभी चिल्लाता तो कभी मार डालने की धमकी देता किंतु वह बालक जरा भी नहीं घबड़ाया और दैत्य पर उसकी पकड़ मजबूत होती गयी. बालक ने उस बालक बिना किसी अस्त्र शस्त्र के उसे मार डाला.
बालक के इस कार्य को आश्रम के संतों और शिष्यों ने भी देखा और सराहना करने लगे.यह बालक कोई और नहीं बल्कि पुरु वंश के प्रवर्तक राजा दुष्यंत और शकुन्तला का बेटा था. दैत्य को मारने पर सभी लोगों ने उसका नाम से सर्वदमन रख दिया. यही बालक था जो शेर के दांत भी गिनता था और बाद में भरत के रूप में विख्यात हुआ और इसी के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा.