Kashi Vishwanath Temple : माता पार्वती के कहने पर काशी में बसे बाबा शिव, काशी विश्ववाथ के नाम से है प्रख्यात

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Kashi Vishwanath Temple : हर हर महादेव काशी विश्वनाथ गंगे… के जयकारों से गुंजायमान उत्तर प्रदेश स्थित काशी यानी वाराणसी तीनों लोकों में शिव की न्यारी नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजमान है। भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंगों में काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान है। पूरे वर्ष भगवान शिव के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के पर्व और सावन मास में यहां श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हो जाती है। इस मंदिर के दर्शन को मोक्षप्रदायी माना जाता है। हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का अत्यधिक महत्व है। वाराणसी वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र के प्रवक्ता डॉ सत्यम अवस्थी और बीएचयू के संस्कृत प्रवक्ता डॉ गिरीश दत्त पांडेय की माने तो जिस जगह ज्योतिर्लिग स्थापित है वह जगह लोप नहीं होती, बल्कि जस का तस बनी रहती है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु इस नगरी में आकर भगवान शिव का पूजन और दर्शन करते है उनको समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

इतिहास 

इस मंदिर का 3,500 वर्षो का लिखित इतिहास है। इस मंदिर का निर्माण कब किया गया था इसकी जानकारी तो नहीं है लेकिन इसके इतिहास से पता चलता है कि इस पर कई बार हमले किए गए लेकिन उतनी ही बार इसका निर्माण भी किया गया। बार-बार के हमलों और पुन: निर्मित किये जाने के बाद मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था।

माँ पार्वती के कहने पर काशी में बसे भगवान शिव

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के संबंध में भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज हो गई और उन्होंने काशी में रहने की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत छोड़ कर देवी पार्वती के संग काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव का निवास स्थान बन गया। यह भी मान्यता है कि काशीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमात्मा ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।

मंदिर की शिखर पर चढ़ा स्वर्ण लेप 

काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू मंदिरों में अत्यंत प्राचीन है। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण लेपन होने के कारण इसे स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं। इस पर महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान स्वर्ण लेपन करवाया था। मंदिर के अंदर चिकने काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग है। मंदिर के ठीक बगल में ज्ञानवापी मस्जिद है। फाल्गुन शुक्ल एकादशी को यहां श्रृंगारोत्सव का आयोजन होता है।

बाबा काशी विश्वनाथ की भव्य मनोहरम आरती :

बाबा के दर्शन के लिए वर्षों से हर माह मासिक शिवरात्रि में काशी आने वाले कानपुर बिधनू ब्लाक के कठेरुआ निवासी श्रीकांत शास्त्री और बकौली निवासी व्यकरणाचार्य पं पीयूष त्रिपाठी ने बताया कि काशी विश्वनाथ में की जाने वाली आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां दिन में पांच बार आरती आयोजित की जाती है। मंदिर रोजाना 2.30 बजे खुल जाता है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर में तड़के सुबह की मंगला आरती के साथ पूरे दिन में चार बार आरती होती है। भक्तों के लिए मंदिर को सुबह 4 से 11 बजे तक के लिए खोल दिया जाता है फिर आरती होने के पश्चात दोपहर 12 से सायं 7 बजे तक दोबारा भक्तजन मंदिर में पूजा कर सकते हैं। सायं सात बजे सप्त ऋषि आरती का वक्त होता है। उसके बाद 9 बजे तक श्रद्धालु मंदिर में आ जा सकते हैं। 9 बजे भोग आरती शुरू की जाती है इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित है। रात 10.30 बजे शयन आरती का आयोजन किया जाता है। मंदिर रात 11 बंद कर दिया जाता है।

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