दो भयंकर असुर के संहार के लिए ब्रह्मा जी ने किया देवी योगनिद्रा का आह्वान, जानें कहां है देवी का निवास

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Anjani Nigam

 एक बार की बात है कि भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर योगिनिद्रा का सहारा लेकर सो रहे थे तभी उनके कानों के मैल से दो भयंकर असुर पैदा हुए. ये दोनों असुर बाद में मधु और कैटभ के नाम से विख्यात हुए. वे दोनों पैदा होते हुए विष्णु की जी नाभि कमल पर विराजमान ब्रह्मदेव का वध करने को आतुर हो गए. ब्रह्मा जी ने जब दोनों भयंकर असुरों को हमला करने की मुद्रा में अपने पास आया देखा तो असमंजस में पड़ गए. उन्होंने विष्णु जी की ओर देखा तो वे सो रहे थे. 

मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य स्कंद में दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में मार्कण्डेय ऋषि ने लिखा कि ब्रह्मा जी ने इस स्थिति से निपटने के लिए भगवान विष्णु को जगाने के उद्देश्य से उनकी आंखों में निवास करने वाली देवी योगनिद्रा को याद किया. मेधा ऋषि ने राजा सुरथ और वैश्य समाधि को उस कथा को विस्तार से बताते हुए कहा कि वह देवी ही विश्व की अधीश्वरी, जगत को धारण करने वाली, पालन करने और संहार करने वाली के साथ ही भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं. ब्रह्मा जी ने उनकी प्रशंसा करते हुए स्तुति की और कहा कि हे देवी तुम ही विश्व ब्रह्मांड को धारण करती हो और तुमसे ही सृष्टि का निर्माण होता है. तुमसे ही इस संसार का पालन होता है कल्प के अंत में तुम ही सबको अपना आहार बना लेती हो. 

देवी योगनिद्रा के विभिन्न रूप

ब्रह्मा जी ने देवी योगनिद्रा का आह्वान करते हुए कहा कि महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूप, महादेवी और महासुरी भी तुम ही हो. भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम ही हो. उनके अस्त्र-शस्त्र का नाम लेते हुए ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम ही खड्गधारणी, शूलधारिणी, घोररूपा, गदा,चक्र, शंख और धनुष धारण करने वाली हो. यहां तक कि बाण, भुशुण्डी और परिध जैसे घातक शस्त्र भी तुम्हारे ही हैं. 

देवी को सर्वशक्तिमान बताया

ब्रह्मा जी ने देवी योगनिद्रा की स्तुति करते हुए यहां तक कहा कि तुम्हारी स्तुति करने में कोई नहीं समर्थ है. मुझे, भगवान शंकर और भगवान विष्णु को तुमने ही शरीर धारण कराया है. इतना बोलने के साथ ही उन्होंने दोनो भयंकर असुरों मधु और कैटभ को मोह में डालने की बात कहते हुए कहा कि जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्रता से जगा दो. इतना सुनते ही देवी योगनिद्रा भगवान की आंख, मुख, नाक, भुजाएं, हृदय और वक्षस्थल से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने खड़ी हो गयीं और भगवान विष्णु भी जाग उठे और दोनों असुरों से युद्ध करने लगे.

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