शनिवार का व्रत करने से प्रसन्न होते है कर्माधिपति शनिदेव.. उनकी प्रसन्नता दिलाती है संकटों से छुटकारा

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Vedeye Desk

कर्माधिपति शनिदेव की नाराजगी और प्रसन्नता दोनों ही व्यक्ति को व्यापक रुप से प्रभावित करती है. शनिदेव प्रसन्न होने पर वह भक्तों का उद्धार करते हैं  इसके विपरीत यानी कि उनके कुपित या नाराज होने पर व्यक्ति को आर्थिक, सामाजिक  और शारीरिक जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. शनिदेव न्याय के देवता है,  इसलिए वह व्यक्ति के अच्छे बुरे सभी कर्मों का फल देते हैं. जब वह नाराज हो जाते हैं तो व्यक्ति के जीवन में उथल पुथल मच जाती है. शनिदेव  को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन उनका पूजन और  व्रत-पूजन करने और कथा सुनने पढ़ने से उनकी कृपा प्राप्त होती है.

व्रत कथा

एक बार नौ ग्रहों में बड़ा कौन है, का विवाद हो गया, सब लोग देवराज इंद्र के पास पहुंचे तो उन्होंने विवाद में न पड़ने के लिए पृथ्वी लोक में राजा विक्रमादित्य को भेज दिया, राजा के सामने उपस्थित होकर सबने यही प्रश्न किया तो वह भी चिंता में फंस गए कि किसके पक्ष में परिणाम सुनाएं. इसी बीच उन्हें एक विचार सूझा तथा सोना, चांदी, कांसा, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहा धातु के नौ आसन बनवाए. लोहे का आसन सबसे पीछे होने से शनिदेव समझ गए कि राजा ने उन्हें सबसे छोटा बना दिया. 

इस बात से कुपित होकर विक्रमादित्य से कहा कि हे राजन, तुम मेरे पराक्रम को नहीं जानते हो. श्री राम को भी साढ़े साती में वनवास जाना पड़ा, रावण पर आई तो उन्होंने वानरों की सेना लेकर चढ़ाई कर दी और वह अपने कुल सहित मारा गया.  

राजा बोले, अब भाग्य में जो होगा देखा जाएगा, कुछ समय के बाद राजा विक्रमादित्य की साढ़ेसाती प्रारम्भ हो गई. शनिदेव घोड़ों के सौदागर बन कर उनके राज्य में पहुंचे तो जानकारी पर राजा ने अश्वपाल को अच्छी नस्ल के घोड़े खरीदने का आदेश दिया. राजा भी पहुंचे और एक सुंदर घोड़े पर सवार हो गए, घोड़ा भी सरपट दौड़ कर दूर जंगल में पहुंचा और उन्हें पटक कर अंतर्ध्यान हो गया. पूछते हुए वह शहर पहुंचा और एक सेठ की दुकान में अपना परिचय उज्जैन का रहने वाला वीका बताया. उस दिन सेठ की खूब बिक्री हुई तो वह वीका को घर ले गया और कमरे में भोजन कराया. कमरे की खूंटी पर नौलखा हार लटका था लेकिन सेठ को वह न मिलने पर उसने वीका को चोर समझ पकड़वा दिया. कोतवाल ने राजा के हुक्म से वीका के हाथ पैर काट दिए गए.

कुछ समय के बाद एक तेली उसे अपने घर ले गया और कोल्हू में बैलों का आवाज से हांकने के काम में लगा दिया. तब तक राजा की साढ़ेसाती समाप्त हो गयी. वर्षाकाल में वह राग मल्हार गा रहा था कि आवाज सुनकर वहां की राजकुमारी मनभावनी मोहित हो गयी और उसी से विवाह करने की ठान ली तो, तेली ने वीका से शादी करा दी. उसी रात शनिदेव ने वीका से स्वप्न में कहा कि तुमने मुझे छोटा बताकर कितना दुख पाया और प्रसन्न होकर हाथ पैर दे दिए. इस पर उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि ऐसा कष्ट किसी और को न दें. शनिदेव ने कहा कि जो नित्य मेहनत करेगा चींटियों को आटा खिलाएगा उसके सारे मनोरथ पूरे होंगे. राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों पत्नियों के साथ उज्जैन राज्य पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ और पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि शनिदेव सब ग्रहों में सर्वोपरि हैं. 

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