Vishalakshi Temple : माता सती के दाहिने कान की मणि गिरने से शिव की नगरी में बना शक्तिपीठ, जानें क्या है मान्यता और परम्परा

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Vishalakshi Temple : वाराणसी भगवान शंकर की नगरी कही जाती है, जहां के बारे में मान्यता है कि वे वहां पर स्वयं विराजते हैं।

Vishalakshi Temple : वाराणसी भगवान शंकर की नगरी कही जाती है, जहां के बारे में मान्यता है कि वे वहां पर स्वयं विराजते हैं। इसी नगरी में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी मंदिर भी है। जहां लाखों भक्त मां का आशीर्वाद लेने आते हैं। यह शक्तिपीठ यूपी के वाराणसी के पवित्र गंगा नदी के मीरघाट पर स्थित है जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। मणि गिरने के कारण ही इस घाट को मणिकर्णिका घाट भी कहा जाता है। इस शक्तिपीठ का उल्लेख आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र में भी है। 

पुराणों में भी है वर्णन

पुराणों के अनुसार जब माता सती के प्राणों का अंत हवनकुंड में कूदने के कारण हो गया था, तब उनके वियोग में शिव जी सुधबुध खो बैठे और उनका शव कंधे पर रख कर इधर उधर घूम रहे। भगवान विष्णु ने तब अपने सुदर्शन चक्र चलाया जिससे माता सती के अंग और आभूषण जगह जगह गिरे, उन्हीं स्थानों पर शक्तिपीठ बने जो अत्यंत पावन और तीर्थस्थल बन गए। वाराणसी पहुंचने वाले द्रविण शैली में बने माता के इस मंदिर के दर्शन अवश्य ही करते हैं। काशी के विशालाक्षी मंदिर का वर्णन देवी पुराण में भी किया गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार मां अन्नपूर्णा ही देवी विशालाक्षी हैं। इसकी पुष्टि स्कंद पुराण से होती है जिसकी एक कथा के अनुसार महर्षि व्यास वाराणसी में भोजन की तलाश में भटक रहे थे किंतु कोई उन्हें भोजन भेंट में नहीं दे रहा था तब माता विशालाक्षी के रूप में मां अन्नपूर्णा प्रकट हुई थीं। विशालाक्षी मंदिर का उल्लेख तंत्र चूड़ामणि में भी है जहां लिखा है कि यहां पर माता सती के दाहिने कान की मणि का निपात हुआ था। साथ में विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी हैं जहां काशी विश्वनाथ विश्राम करते हैं। 

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मंदिर का महत्व और परम्परा<br >शक्तिपीठों को मां गौरी का पवित्र स्थान माना जाता है यहां की शक्ति माता विशालाक्षी और भैरव काल भैरव हैं

मंदिर का महत्व और परम्परा

शक्तिपीठों को मां गौरी का पवित्र स्थान माना जाता है। यहां की शक्ति माता विशालाक्षी और भैरव काल भैरव हैं। श्रद्धालु प्रारंभिक काल से ही मां को विशालाक्षी और भगवान शिव को काल भैरव के रूप में पूजते आ रहे हैं। परम्परा के अनुसार मणिकर्णिका घाट पर भक्त पहले गंगा स्नान करते हैं फिर धूप, दीप, सुगंध, पुष्प, नए वस्त्र, हार व मोतियों के आभूषण माता को चढ़ाते हैं। नवरात्र के अवसर पर यहां महिला भक्तों की खासी भीड़ रहती है फिर वह चाहे शारदीय नवरात्र हो या चैत्रीय। मान्यता के अनुसार देवी विशालाक्षी की पूजा-उपासना से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि यदि मंदिर में 41 मंगलवार तक कुमकुम का प्रसाद चढ़ाया जाए तो इससे देवी मां भक्त की झोली भर देती हैं। माता विशालाक्षी के दर्शन से रोग, संताप आदि दूर होते हैं और संतान की प्राप्ति होती है। जिन कन्याओं का विवाह नहीं हो पा रहा हो, या विवाह में कुछ न कुछ बाधा आ जाती हो, उन कन्याओं के लगातार 41 दिनों तक माता विशालाक्षी के दर्शन करने से विवाह सम्बंधित सभी परेशानी दूर हो जाती है।

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