Anjani Nigam
नवरात्र का सातवां दिन आदिशक्ति देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि को समर्पित है. दुष्टों का नाश करने के लिए आदिशक्ति ने यह रूप धारण किया था, जिसके कारण मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार देवी के इस रूप की पूजा करने से दुष्टों का विनाश होता है. मान्यता है कि मां कालरात्रि की कृपा से भक्त को जीवन में कभी भी अग्नि, जल, शत्रु या रात्रि का भय नहीं सताता है.
इन दो असुरों के संहार के लिए मां ने रखा भयंकर स्वरूप
रात के अंधकार के समान देवी कालरात्रि का शरीर काला और अत्यंत भयानक है. मां के चार हाथ हैं, जिनमें से एक में गड़ासा, दूसरे में वज्र और दूसरी तरफ का एक हाथ वरमुद्रा और दूसरा अभय मुद्रा में है. इनके बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की माला है जिसकी चमक बिजली के समान है. क्रोध में माता की नाक से अग्नि निकलती है. इनका वाहन गधा है. मां के स्वरूप की एक और विशेषता है कि इनके तीन नेत्र हैं. देवी की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं. उनके नाम का स्मरण करने से दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत भाग जाते हैं. देवी भागवत पुराण के अनुसार मां कालरात्रि ने युद्ध में चंड मुंड के बालों को पकड़ कर खड्ग से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया था. इतना करने के बाद देवी ने उनके सिरों को देवी कौशिकी के चरणों में रख दिए. इस पर प्रसन्न होकर देवी ने कहा कि आज से भक्त तुम्हें चामुंडा देवी के नाम से भी पुकारेंगे. माता कालरात्रि के भंयकर स्वरूप को देखकर असुर और नकारात्मक शक्तियां भले ही भयभीत होती हों किंतु माता अपने भक्तों के लिए ममता दर्शाने वाली और सर्वसुलभा हैं जिसके कारण उन्हें शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है.
देवी के नाम की सार्थकता
माता कालरात्रि को चामुंडा नाम तो स्वयं देवी कौशिकी ने दिया है, जिसका अर्थ है कि वे दुष्टों का संहार करने को तत्पर हैं इसके साथ ही भक्तों के प्रति उनके विशेष गुणों के कारण शुभंकरी भी कहा जाता है अर्थात इतनी भयानक होने के बाद भी वे भक्तों का शुभ करने वाली हैं. देवी तमाम सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं, इनकी साधना से भविष्य में देखने की क्षमता का विकास होता है और मन से भय का नाश होता है. इन्हें लाल गुड़हल के फूलों पसंद है.



