Manas Manthan : पवनपुत्र हनुमान माता सीता की खोज में लंका पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर उड़े तो देवताओं ने उनके बल और बुद्धि की परीक्षा लेने का विचार किया.
Manas Manthan : पवनपुत्र हनुमान माता सीता की खोज में लंका पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर उड़े तो देवताओं ने उनके बल और बुद्धि की परीक्षा लेने का विचार किया. इसी विचार के फल स्वरूप सर्पों की माता सुरसा को समुद्र में भेजा. सुरसा ने समुद्र के ऊपर उड़ रहे हनुमान जी को देखकर परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनसे कहा, आज का दिन बहुत ही अच्छा है क्योंकि देवताओं ने मेरे भोजन का प्रबंध कर दिया और इसलिए तुम्हें भेजा है अब मैं तुम्हे भोजन के रूप में ग्रहण करुंगी. इतना सुनने पर हनुमान जी ने कहा कि मैं अपने प्रभु श्री राम का कार्य पूरा करने के लिए निकला हूं इसलिए आप मुझे क्षमा करें, पहले मैं माता सीता का पता लगाऊंगा और फिर सारा समाचार श्री राम को बताने के बाद आपके मुख में स्वयं ही प्रवेश कर जाऊंगा ताकि आप मुझे भोजन के रूप में ग्रहण कर सकें.
हनुमान जी ने ढूंढा सटीक उपाय <br >हनुमान जी ने उनसे विनती करते हुए कहा हे माता मैं सत्य ही कहता हूं अभी मुझे जानें दें
हनुमान जी ने ढूंढा सटीक उपाय
हनुमान जी ने उनसे विनती करते हुए कहा, हे माता मैं सत्य ही कहता हूं, अभी मुझे जानें दें लेकिन सुरसा ने उन्हें किसी भी तरह जाने नहीं दिया बल्कि अपना मुख खोल कर उसे एक योजन यानी करीब आठ किलोमीटर बड़ा कर लिया. इस दृश्य को देख कर बल और बुद्धि के भंडार हनुमान जी भला कहां हार मानने वाले थे, उन्होंने तुरंत ही अपने शरीर के आकार को उससे दोगुना कर लिया. सुरसा ने जैसे जैसे अपने मुख को फैलाया हनुमान जी भी अपने आकार को विस्तार देते रहे. सुरसा ने अपने मुख का आकार जैसे ही सौ योजन किया, उन्होंने बहुत ही छोटा आकार किया और उसके मुख में घुस कर तुरंत ही बाहर निकल आए. इसके बाद उन्होंने सिर झुका कर सुरसा से विदा मांगी और कहा, हे माता अब मुझे अपने प्रभु का कार्य पूरा करने के लिए आज्ञा दीजिए.
सुरसा ने दिया आशीर्वाद
सुरसा ने उन्हें जवाब दिया कि मुझे तो देवताओं ने ही तुम्हारी बुद्धि और बल की परीक्षा करने के लिए भेजा है. सुरसा ने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम श्री राम का काम करके ही लौटेगे क्योंकि तुम तो बल और बुद्धि दोनों के भंडार हो. इस पर हनुमान जी प्रसन्न हो कर अपने गंतव्य की ओर उड़ चले.
लेख का मर्म
सुरसा और हनुमान जी की इस कथा से शिक्षा मिलती है कि बल और बुद्धि होने के बाद भी उसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब उसकी आवश्यकता हो, बात-बात पर ताकत दिखाने की भूल कभी भी नहीं करनी चाहिए अन्यथा बल और बुद्धि दोनों का ही ह्रास होता है.