Manas Manthan: इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धर कर सीता जी के पैर में चोंच मारी, जानें फिर श्री राम ने उसके साथ क्या किया

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Vedeye world, Pt. Shashishekhar Tripathi

Manas Manthan: वनवास में विचरण करते हुए एक बार श्री राम ने बगीचे से खूब सारे सुंदर सुंदर फूल चुने. फिर उन्हें सीता जी के प्रति प्रेम जगा तो उन्होंने उन्हीं फूलों से सुंदर गहने बनाए और एक स्फटिक शिला पर बैठीं सीता जी को प्यार से पहनाए. वो तो अपने प्रेम में मग्न थे और सीता जी के सामने उसका इजहार कर रहे थे लेकिन देवराज इंद्र का एक पुत्र जयंत मूर्खता कर बैठा जिसका खामियाजा उसे जीवन भर भोगना पड़ा. 

कौवे ने सीता जी के पैर में मारी चोंच

दरअसल जयंत को श्री राम की शक्ति को परखना चाहता था, सो उनकी परीक्षा लेने के लिए कौवे का रूप धरा और जा पहुंचा उस शिला के पास जहां श्री राम सीता जी का फूलों से श्रृंगार कर बैठे हुए थे. वह झपट कर सीता जी के निकट पहुंचा और उनके पैरों में चोंच मार कर वहां से फुर्र हो गया. जैसे ही रघनुनाथ जी ने देखा की उन्हें प्राणों से भी प्रिय सीता के पैर में चोंच मारने से दर्द होने लगा और हल्का सा खून भी आ गया, उन्होंने मौके पर ही पड़े हुए सरकंडे की सींक को बाण बना कर उस पर निशाना साथ कर छोड़ दिया. मंत्र से प्रेरित सरकंडे की सींक ब्रह्मबाण बन कर उसके पीछे आ गया. अब कौवे को लगा कि इस सींक से उसका बचना मुश्किल है तो और भी तेजी से उड़ा, लेकिन यह क्या तीर तो उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा है. 

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पिता सहित सभी ने किया मदद से इनकार

भागते भागते जयंत अपने असली रूप में आया और पिता देवराज इंद्र को पूरी बात बतायी लेकिन उसने तो धोखे से सीता जी को चोट पहुंचा कर श्री राम से वैर लेने की गलती कर दी थी, इसलिए इंद्र ने कुछ भी सहायता करने से मना कर दिया. वह ब्रह्मलोक, शिवरोक सहित सभी लोकों में बचने के लिए घूमता रहा किंतु किसी ने भी उसकी सहायता करने से इंकार कर दिया कि जो श्री राम का द्रोही है, वह सबका द्रोही है. तुलसी रचित राम चरित मानस के अरण्यकांड में काकभुशुण्डि जी गरुड़ जी को यह रोचक और अद्भुत प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति श्री रघुनाथ जी से विमुख होता है, सारा जगत ही उसके लिए आग से भी अधिक जलने वाला हो जाता है. 

लेख का मर्म

जयंत की घटना से सीख मिलती है कि श्री राम सर्वशक्तिमान हैं, उनकी परीक्षा लेने की गलती कोई मूर्ख ही कर सकता है जैसे एक मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाने की लालसा में पानी में उतर जाती है. श्री राम के द्रोही को संसार में कहीं भी शरण नहीं मिलती है.   

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