Skand Shashthi: इन देवता का व्रत पूजन करने से भरती है निसंतान दंपत्तियों की गोद, मिलती है संतान को लंबी आयु और शत्रुओं पर विजय

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Skand Shashthi: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रूप में जाना जाता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. भगवान कार्तिकेय को चम्पा का फूल बहुत पसंद है इसलिए उनकी पूजा में इस फूल को अवश्य ही चढ़ाया जाता है. चम्पा का फूल चढ़ाने के कारण ही इसे चम्पा षष्ठी के रूप में भी जानते हैं. इस व्रत को करने से निःसंतान लोगों को संतान की प्राप्ति होती है. धन वैभव तथा माता लक्ष्मी की कृपा भी स्वाभाविक रूप से प्राप्त होती है. स्कंद कुमार के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा भी अवश्य ही करनी चाहिए. इस बार स्कंद षष्ठी का पर्व 7 दिसंबर शनिवार को मनाया जाएगा. संतान की लंबी आयु तथा शत्रुओं को पराजित करने के लिए भी स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है.

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स्कंद षष्ठी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती के भस्म होने के बाद भगवान शिव समाधिस्थ होकर तपस्या में लीन हो गए. इस बीच संसार में तारकासुर नाम के दैत्य ने अपना आतंक फैलाया और हर जगह अधर्म का बोलबाला हो गया. देवताओं को पराजित कर उसने स्वर्ग को भी अपने अधिकार में ले लिया तो सारे देवता ब्रह्मा जी के पास समाधान के लिए पहुंचे. उन्होंने कहा कि शिव जी पुत्र ही तारकासुर का अंत कर सकता है. अब सबके सामने समस्या आई की समाधि में लीन शिव जी को कैसे जगाया जाए और इस कार्य में सबने कामदेव की मदद ली. कामदेव ने कुछ ऐसा किया कि दुनिया भर में लोग काम वासना के प्यासे हो गए. ध्यान में लीन शिव जी के मन में भी पार्वती के प्रति प्रेम जगा तो वे क्रोध में आ गए और अपनी तीसरी आंख खोली जिससे देखते ही देखते कामदेव अग्नि में भस्म हो गया. इसके बाद इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान शिव को अपनी समस्या बताई इस पर उन्होंने पहले तो पार्वती जी की परीक्षा ली फिर खरा उतरने पर उनके साथ विवाह को राजी हो गए. विवाह के बाद ही भगवान कार्तिकेय का उनके पुत्र के रूप में जन्म हुआ जिन्हें स्कंद देव भी कहते हैं. मार्गशीर्ष षष्ठी के दिन उनका जन्म होने के कारण षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय की पूजा का विधान है.

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