Manas Manthan: ब्रह्मा जी को जब कामदेव के भस्म होने और भगवान शिव के सामने रति के विलाप पर द्वापर युग में पति से मिलन का आशीर्वाद मिलने की सूचना मिली तो वे देवताओं को लेकर वैकुंठ को चले. वहां से विष्णु जी को लेकर सारे लोग कैलास चले जहां पर भगवान शंकर विराजमान थे. सबने वहां पहुंच कर शिव जी की अपने अपने तरीके से स्तुति की तो प्रसन्न होकर उन्होंने सभी के एक साथ संबोधित करते हुए पूछा कि आप लोग किस प्रयोजन से आए हैं.
कामदेव को दंड देने के साथ उस पर कृपा भी की
इस पर ब्रह्मा जी ने अगुवाई करते हुए कहा, हे प्रभो आप तो अंतर्यामी हैं और सबके मन की बात जानते हैं. फिर हम सब भक्तिवश आपसे एक विनती करने आए हैं. सभी देवताओं के मन में इस बात को लेकर जबर्दस्त उत्साह है, सारे लोग आपका विवाह देखना चाहते हैं. तुलसी बाबा ने श्री राम चरित मानस के बालकांड में इस प्रसंग का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए लिखा की ब्रह्मा जी ने आगे कहा, आप तो कामदेव का घमंड चूर करने वाले जिसे इस बात का बहुत ही अभिमान था कि वह जिसे चाहे काम वासना के वशीभूत कर सकता है. आप तो कृपा के सागर हैं, तभी तो आपने एक ओर कामदेव को उसकी करनी का दंड दिया दूसरे रति की दशा का अनुमान कर उसे फिर से अपने पति कामदेव से मिलने का वरदान भी दिया. यह तो आपके स्वभाव में भी है कि पहले आप लोगों को दंड देते हैं फिर उनकी भक्ति और श्रद्धा के आधार पर कृपा भी करते हैं. पार्वती ने आपको पाने के लिए कठोर तप किया है अब उन्हें स्वीकार कर कृपा करिए.
ब्रह्मा जी की बात सुनने के साथ ही उन्हें प्रभु श्री राम के वचनों की भी याद आ गयी और प्रसन्नता के साथ बोले, ऐसा ही होगा. इतना सुनते ही आकाश से देवताओं ने फूलों की वर्षा करने के साथ ही नगाड़े बजाने शुरु कर दिए.
लेख का मर्म
भगवान शंकर को कृपा के सागर यूं ही नहीं कहा जाता है, यदि वे किसी को दंड देते हैं तो गलती सुधारने पर उसके ऊपर कृपा करने में देरी नहीं करते हैं. इस लेख से शिक्षा मिलती है कि यदि कभी किसी भी व्यक्ति से जाने अनजाने में गलती हो भी जाए तो उसे सुधारने का प्रयास जरूर करना चाहिए.