महाभारत काल के इस मंदिर में जलाभिषेक करने पर भोलेनाथ अपने भक्तों के दूर करते हैं सारे कष्ट, देते हैं सुख समृद्धि

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जिस तरह से प्रभु श्री राम ने वनवास काल में लंका पर चढ़ाई करने के पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर उनका विधि विधान से पूजन किया था, उसी तरह द्वापर युग में पांडवों ने भी वनवास काल में अनेकों स्थानों पर शिवलिंग की स्थापना कर पूजन किया. इन्हीं से एक है फर्रुखाबाद स्थित पांडेश्वर नाथ मंदिर. सावन ही नहीं प्रत्येक सोमवार को यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. मान्यता है कि भोलेनाथ का जलाभिषेक करने वालों के जीवन में किसी तरह का दुख या कष्ट नहीं रहता है और उन्हें सुख शांति व समृद्धि मिलती है. 

ऋषि के कहने पर, माता कुंती ने मंदिर बनवाया

मंदिर के बारे में कहा जाता है, कि जुए में हारने के बाद माता कुंती के साथ पांडव वनवास में कभी इस जंगल तो कभी उस जंगल भटक रहे थे. घूमते हुए वे फर्रुखाबाद पहुंचे तो धौम्य ऋषि से भेंट हुई. ऋषि ने माता कुंती से शिवलिंग की पूजा करने को प्रेरित किया इस पर पांचों भाई शिवलिंग की तलाश में निकले और शिवलिंग लेकर आए. इन लोगों ने जहां पर डेरा जमा रखा था, वहां पास में पीपल के पेड़ के नीचे एक चबूतरे पर युधिष्ठिर द्वारा लाया गया शिवलिंग धौम्य ऋषि ने ही स्थापित कराया और माता कुंती जब तक वहां रहीं नित्य ही पूजन करती रहीं. इस शिवलिंग को बाद में पांडेश्वर नाथ कहा जाने लगा. इसके अलावा भीमसेन द्वारा लाया गया शिवलिंग गंगा जी के रास्ते पर स्थापित किया गया था. अर्जुन द्वारा लाए गए शिवलिंग को तामेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है. इसी तरह नकुल के शिवलिंग को कोतवालेश्वर और सहदेव द्वारा लाए गए शिवलिंग को कंपिल में स्थापित किया गया. 

मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग भी

पांडेश्वर नाथ मंदिर की एक और विशेषता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वर, घुमेश्वर, नागेश्वर, वैद्यनाथ 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित है. 

दर्शन मात्र से मनोकामनाएं होती हैं पूरी

मान्यता है कि इस मंदिर में पूरी आस्था और श्रद्धा से दर्शन करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मंदिर के बारे में बताया जाता है जो लोग पास के ही पांचाल नगरी में गंगा नदी से मटके में जल भर कर लाते हैं और फिर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं.

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