भादों महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण चतुर्भुज नारायण स्वरूप में प्रकट हुए।
Shri Bhakatmal : “परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे” अर्थात साधु पुरुषों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूं, को सत्य साबित करते हुए भादों महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आधी रात में मथुरा के राजा कंस की जेल में भगवान श्री कृष्ण चतुर्भुज नारायण स्वरूप में प्रकट हुए। माता देवकी की प्रार्थना पर शिशु रूप में आए तो पिता वसुदेव उन्हें गोकुल में नंदबाबा के घर में यशोदा माता के सुला कर उनकी पुत्री के रूप में जन्मीं जगदम्बा महामाया को ले आए। जन्म से लेकर बड़े होने तक उन्होंने अद्भुत लीलाएं रचीं।
पालने में झूल रहे थे तो पिशाचिनी पूतना के प्राणों को दूध के साथ पी गए, तृणावर्त, बकासुर और वत्सासुर को पीस डाला। सपरिवार धेनुकासुर और प्रलम्बासुर को मारने के साथ ही आग से घिरे गोपों की रक्षा की। गेंद के नाम पर लीला करते हुए कालियानाग का दमन किया और नन्दबाबा को अजगर से छुड़ाया। गोपियों ने भगवान को पति रूप में पाने के लिए व्रत किया तो सबको प्रसन्न कर वर दिया। गोवर्धन धारण की लीला कर संगठन में शक्ति का संदेश देने के साथ ही इंद्र का घमंड तोड़ा और कामधेनु ने स्वयं आकर भगवान का यज्ञाभिषेक किया। ब्रज की सुंदरियों के साथ शरद पूर्णिमा को रास रचाया और दुष्ट शंखचूड़ यक्ष, अरिष्ट और केशी का भी वध किया।
अक्रूर जी वृंदावन से श्री कृष्ण और बलराम जी को साथ लेकर मथुरा पहुंचे तो वहां कुवलयापीड़ हाथी, मुष्टिक, चाणूर और कंस का संहार कर माता देवकी, पिता वसुदेव और राजा उग्रसेन को कारागार से मुक्त करा राजसिंहासन पर बैठाया। इतनी लीला करने के बाद वे संदीपनी गुरु के यहां विद्या अध्ययन करने पहुंचे और उनके मृत पुत्रों को लौटा लाए। जरासंध कई बार भारी सेना लेकर मथुरा में आया तो भगवान ने उनका उद्धार कर पृथ्वी का भार कम किया। कालयवन को मुचुकुन्द से भस्म करा दिया और रातो-रात द्वारकापुरी बसा कर सबको वहां पहुंचा दिया।
भगवान ने दल-के-दल शत्रुओं को युद्ध में पराजित कर रुक्मिणी जी का हरण किया। बाणासुर के साथ युद्ध के प्रसंग महादेव जी पर ऐसा बाण छोड़ा कि वे जंभाई लेने लगे और इधर बाणासुर की भुजाएं काट डालीं। प्राग्ज्योतिषपुर अर्थात वर्तमान असम के राजा भौमासुर को मारकर सोलह हजार कन्याएं ग्रहण कीं। शिशुपाल, पौण्ड्रक, शाल्व, दन्तवक्त्र, मुर, पंचजन और महाबली दैत्यों का बल पौरुष चूर कर वध किया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों को माध्यम बना कर दुष्टों से पृथ्वी का भार कम किया। अंत में ब्राह्मणों के शाप के कारण उद्दंड हो चुके यदुवंश का संहार कराया। उद्धव जी ने जिज्ञासा दिखाई तो उन्हें आत्मज्ञान के साथ ही धर्म निर्णय की जानकारी दी। इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अनंत अद्भुत अलौकिक लीलाएं कीं जो जगत के प्राणियों को पवित्र करने वाली हैं।